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________________ स्वामी समन्तभद्र। तस्यैव शिष्यशिवकोटिसूरिस्तपोलतालम्बनदेहयष्टिः। संसारवाराकरपोतमेतत्तत्वार्थसूत्रं तदलंचकार ।। -श्र० शिलालेख। 'विक्रान्तकौरव' के उक्त पद्यमें 'शिवकोटि' के साथ 'शिवायन' नामके एक दूसरे शिष्यका भी उल्लेख है, जिसे 'राजावलिकथे' में 'शिवकोटि' राजाका अनुज (छोटाभाई ) लिखा है और साथ ही यह प्रकट किया है कि उसने भी शिवकोटिके साथ समंतभद्रसे जिनदीक्षा ली थी; * परंतु शिलालेखबाले पद्यमें वह उल्लेख नहीं है और उसका कारण पचके अर्थपरसे यह जान पड़ता है कि यह पय तत्वार्थसूत्रकी उस टीकाकी प्रशस्तिका पद्य है जिसे शिवकोटि आचार्यने रचा था, इसी लिये इसमें तत्त्वार्थसूत्रके पहले 'एतत् ' शब्दका प्रयोग किया गया है और यह सूचित किया गया है कि 'इस' तत्त्वार्थसूत्रको उस शिवकोटि सूरिने अलंकृत किया है जिसका देह तपरूपी लताके आलंबनके लिये यष्टि बना हुआ है । जान पड़ता है यह पये उक्त टीका परसे ही शिलालेखमें उद्धृत किया गया है, और इस दृष्टिसे यह पद्य बहुत प्राचीन है और इस बातका निर्णय करनेके लिये पर्याप्त मालूम होता है कि 'शिवकोटि' आचार्य स्वामी समन्तभद्रके शिष्य थे + । आश्चर्य नहीं जो ये 'शिवकोटि' कोई राजा ही हुए हों । * यथा-शिवकोटिमहाराज भन्यनप्युदर निजानु वेरस...संसारशरीरभोगनिगदि श्रीकंठनेम्बसुतो राज्यमनित्तु शिवायनं गूडिय भा मुनिपराखिये 'जिनदीक्षेयनान्तु शिवकोव्याचार्यरागि.... । इससे पहले दो पद्य मी उसी टीकाके जान पड़ते हैं; और वे ऊपरते 'गुणादिपरिचय में उद्धृत किये गचुके हैं। + नगरताल्लुकेके ३५ ३ शिलालेखमें भी 'शिवकोटि ' आचार्यको समन्तभ प्रका शिष्य लिखा है ( E.C. VIII.)।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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