SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 104
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुनि-जीवन मोर आपस्काल । जैन मार्ग (धर्म) इस कलिकालमें सब ओरसे भद्ररूप हुआ, वे गणनायक आचार्य समंतभद्र पुनः पुनः वेदना किये जानेके योग्य हैं। इस परिचय में, यद्यपि, 'शिवकोटि ' राजाका कोई नाम नहीं है; परंतु जिन घटनाओंका इसमें उल्लेख है वे 'राजावलिकथे' आदिके अनुसार शिवकोटि राजाके 'शिवालय' से ही सम्बन्ध रखती हैं। 'सेनगणकी पट्टावली' से भी इस विषयका समर्थन होता है। उसमें भी 'भीमलिंग 'शिवालयमें शिवकोटि राजाके समंतभद्रद्वारा चमत्कृत और दीक्षित होनेका उल्लेख मिलता है। साथ ही उसे 'नवतिलिंग' देशका 'महाराज' सूचित किया है, जिसकी राजधानी उस समय संभवतः ‘कांची' ही होगी । यथा__(स्वस्ति ) नवतिलिङ्गदेशाभिरामद्राक्षाभिरामभीमलिङ्गस्वधन्वादिस्तोटकोत्कीरण(१)रुद्रसान्द्रचन्द्रिकाविशदयशःश्रीचन्द्रजिनेन्द्रसद्दर्शनसमुत्पन्न कौतूहलकलितशिवकोटिमहाराजतपोराज्यस्थापकाचार्यश्रीमत्समन्तभद्रस्वामिनाम्*" ___ इसके सिवाय, — विक्रान्तकौरव' नाटक और श्रवणबेलगोलके शिलालेख नं० १०५ (नया नं० २५४ ) से यह भी पता चलता है कि 'शिवकोटि' समंतभद्रके प्रधान शिष्य थे । यथा-- शिष्यौ तदीयौ शिवकोटिनामा शिवायनः शास्त्रविदां वरेण्यौ । कृत्स्नश्रुतं श्रीगुरुपादमूले बधीतवंतौ भवतः कृतार्थो । -विक्रान्तकौरव । - - १ 'स्वयंसे 'कीरण ' तकका पाठ कुछ अशुद्ध जान पाता है। * *जैनसिद्धान्तभास्कर ' किरण १ ली, पृ० ३८॥ २ यह पद्य 'जिनेन्द्रकल्याणाभ्युदय' की प्रशस्तिमें भी पाया जाता है।
SR No.010776
Book TitleSwami Samantbhadra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1925
Total Pages281
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy