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________________ (४०) 8. अथ श्री संघपट्टका - कमल के बे तो काला केशरूपी जमरा जेमा रह्या रे एवं, ने सुंदर नेत्ररुपी निर्मळ पत्र जेमा रह्यांडे एवं, ने दांतनी कांति रूप मकरंदने फरतुं ( उत्पन्न करतुं) ने कंठरूप नाले करीने जणातुं. एवं नगवंतनुं मुख, कमल सदृश जणाय ले ॥ ४ ॥ · टीका-अनणीयोमणीरश्मिकिम्मिरितककुन्मुखम् ॥ इतश्च । नागराजस्य सिंहासनमकंपत ॥ ५ ॥ अर्थः-एटर्बु थया पनी मोटा मणीनी कांतियोवतू चित्र विचित्र का दिशाओनां मुख जेणे एवं नागराजनुं सिंहासन कांपतु हवू ॥ ५ ॥ टीकाः-वृत्तांतस्तेन कृत्तांतःकरणस्थैनसा ततः ॥प्रयुक्तावधिनाऽबोधि प्रनोः पादप्रसादवत् ॥ ६ ॥ अर्थः-त्यार पनी लेदन थयु बे अंतःकरणमा रहेवं पाप जेनुं एवा ते नागराजे अवधिज्ञान प्रयोजीने प्रतु संबंधी सर्वे वृत्तांत प्रजुना पादप्रसादनी पेठे,जाएयु. एटले जेम तीर्थकरनो जन्मोत्सव जाणे तेम. अथवा पोता उपर जे पूर्वेप्रजुना चरणनो अनुग्रह थयो ने तेम अथवा कम योगीना पंचाग्नि कुंममा पूर्वे बलतो हतो तेथी नगवाने पोताना 'चरणप्रसादवके श्रा प्रकारनी पदवी पमामी बे, ए पादप्रसादसहित जेम होय तेम जाणतो हवो॥ ६ ॥.. टीका:-सत्पत्रलकुचारोहास्तिलकानुगतालिकाः ॥ कर्णिकारचितच्छाया सामंजुलवलीलताः ॥ ७ ॥ वन्यासमा: समादाय देवीः पद्मावतीमुखाः॥ धरणेजस्ततो नक्त्या स्वामिनं. समुपेयिवान् ॥ ७ ॥ युग्मम्
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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