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________________ •8. अंथ श्री संघपट्टका , •mwvMMA al अर्थः-त्यार पठी सुशोनित स्तन अने कटीथी नीचयो जाग ते जेमनो एवी; अने तिलक सहित बे ललाट जेमनां एवी तथा काननां श्रानुषणवमे रची सुंदर शोना जेमनी एवीने सुंदर ले त्रीवलीरुपी लता जेमनी एवी ने वनदेवी सरखी जणाती जे पद्मावतीप्रमुख देवीयोने संघाथे लश्ने धरणे नक्तिए करीने पार्श्वनाथ स्वामी पाले आवता हवा. वनदेवी प्रत्ये विशेषरानो अर्थ जे सारा पत्र जेने जे एवा लकुच नामे वृक्षनो ने श्राश्रय जेमने एहवी ने पोतामां वधारे सुगंध डे माटे तिलकना वृत्तथी प्राप्त थया ने जमर जेमने एहवी ने कर्णिकारनां वृक्षवमे थले गया जेमने एवी ने सुंदर लवली नामे लताओ जेनी पासे एहवी.. ॥ ॥७॥ टीका:-विजुरीक्षांबभूवेथ तेन मध्येजलोच्चयम् ॥ जर्मिसंवर्मितः शौरिरंत राधिप यथा ॥ए ॥ . अर्थः-त्यार पड़ी ते धरणे जलना समूह मध्ये तरंग वझे व्यातथएला नगवान दी.जेमसमुनी मध्ये नारायणने देखे तेम.ए दृष्टांत अन्यशास्त्रने अनुसारी ते कडं .समुपनीमध्ये शेषनागना शरीर उपर नारायण सूत्रे ने ते नाग पोतानी हजार फणारुपी बत्र तेमना उपर धरे बे. ने पासे लक्ष्मीजी पग चांपे , तेथी तेमनुं नाम शेषशायी जगवान कहेवाय डे इत्यादि कथाले ।। गए ।। टीकाः-मणिदीधितिनि तधनसंतमसं ततः, ॥ अपारस्फारदुरांबुधाराचौरगौरवम् ॥ एंग. ॥ श्रातपत्रं श्रियः संत्रं फुद्यानवफणामयम् ॥ जुवनाधिपतेरू प्राग् - बित्नरांबभूच सः॥ ए ॥
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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