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________________ - अथ श्री संघपटक न. - लगुण प्रतिसेविनः उत्तर गुणप्रतिसे विनश्च यत्र तदनायतन मिति , गाथा त्रयार्थः ॥ . अर्थ:-जे. जगाए लिंग धरवाथी सरखा धर्मवाळा घण रहेता होय ने तेम जुदा जुदा चित्तवाळा होय ने अनार्यने लिंग तथा वेष ते वेबमे ढांकेला ज्यां ले ते अनायतन क्षेत्र जाणवु ए गाथा सुगम ने माटे एनी टीका टीकाकारे नथी करी तेमांआटवं विशेष ले जे लिंग तथा वेष तेणे करोनेज ढांकेला बे एटले प्राकृत लोकोएं सुविहित मुनिथकी जुदा जाएया नथी एटलो अर्थ. ए प्रकारे वाहेरथी तथा अंतरथी मूलगुण प्रतिसेवि . तथा उत्तरगुण प्रतिसेवि ते जे जगाए रहेता होय ते अनायतन कहीए एम ए त्रण गाथानो अर्थ हैं. टीका: श्री हरिजनसूरिनि विवरणे प्रतिपादित इति ॥ श्रस्य चायमाशयः ॥ नहि रुजादिगृहत्र त्स्वरूपेण जिनन्नवनमनायतनं ॥ किंतू पाधिवशात् ॥ उपाधिश्च तत्र लिगिनिवासः॥ श्रतएवोक्तं ॥ यत्र निवसंति तदनायतनमिति । तथा च यदि ते जिनजवने निवसति तदा तन्निवासौपाधिकत्वाद् नवति जिननवनस्या.नायतनत्वं ॥ अर्थः-जे हरिनजरिए विवरण कर्यु ले तेमां प्रतिपादन कयु ले तेनो अभिप्राय ए ले जे शिवमंदिरनी पेठे स्वरूपे करीने जिनन्नवन अनायतन नथी त्यारे शुं तो नपाधिना वशथी अनायसन ने तेमां नपाधि शोठे तो खिंगधारीनो निवास ए रूप उपा
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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