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________________ 1 अथ श्री संघपट्टक - wwws वळी कोई कारणे पोतानी मेळे ते कुमार्गथी पाबु न वळाय त्यारे जे पुरुष एकुमार्गथी पाला वळ्या होय ते उपरप्रमोद करवो घटित डे वळी आ श्रावकं तो ए बेमांथो एके पण करवानो उत्साह नथी करता. उलटो जे कुमार्गथी कोइक निवृत्ति पामे के तेना उपर पर्ण तुज उपजव करवानो प्रयत्न करे ने ते माटे आ ते शुं दिग्मोह पा. म्या के के थयु ने इत्यादि योजना करवी तेणे करीने आ स्पष्टार्थ कह्यो जे दिग्मोह पामेला में पुरुष ते निश्चे हितकारी पुरुषे तेथी निवृत्ति पमामवा मांड्या ने तोपणं ते दिग्मोहादिकथीज के वळ निवृत्ति नथी पामता में आतो केवळ कुमार्गथी निवृत्ति नथी पामता'एटर्बुज नहि त्यारे शंतो जे ए कुमार्गथी- निवृत्ति पामे ले ते उपर उलटा इर्ष्या करे के माटे ते दिग्मूढ थकी पण आतो अतिशे निंद्य ले. भूमा ने ए प्रकारे आ-काव्यनो अर्थ थयों ॥१७॥ टीकाः-सांप्रतलिंगिदेशनया' श्राद्धैरविधिविहितस्य जि. नमजनस्यापि दुर्गतिपातहेतुत्वप्रतिपादनछारेणश्रुतपथविज्ञा दर्शयन्नाद ॥ अर्थ:-हवे लिंगधारीनी देशनायें करीने श्रावक लोको विधि रहित जे जिनमज्जन नत्लाव करे जे तेपण उगतिमां पमवानु कारण एम प्रतिपादन करनार बार करीने सिद्धांत मार्गनी श्रवज्ञा देखामता सता कहे . Make
SR No.010774
Book TitleSanghpattak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvallabhsuri
PublisherJethalal Dalsukh Shravak
Publication Year1907
Total Pages703
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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