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________________ आगम के अनमोल रत्न हो गया । मेरु पर्वत आदि के स्वप्न जो मैंने, पिताजी ने और सेठजी ने देखे थे उनका वास्तविक फल यही है कि एक वर्ष एक माह और १० दिन के अनशन के कारण भगवान का शरीर सूख रहा था । उनका पारण कराकर कर्मशत्रुओं पर विजय प्राप्त करने में सहायता की है । यह सुनकर श्रेयांसकुमार की सभी प्रशंसा करते हुए अपने-अपने स्थान चले गये । पूर्वभव के स्मरण के कारण श्रेयांस कुमार को सम्यक्त्व की प्राप्ति हुई इसलिये उसने भगवान को भक्तिपूर्वक दान दिया। तत्वों में श्रद्धा रखता हुमा चिरकाल तक संसार के सुख भोगता रहा । भगवान को केवल ज्ञान उत्पन्न होने पर उसने दीक्षा स्वीकार कर ली। निरतिचार संयम पालते हुए घमघाति कर्मों का क्षय करके केवल ज्ञान प्राप्त किया । आयुष्य पूरा होने पर सभी कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त किया। छद्मस्थावस्था में विचरते हुए भगवान को एक हजार वर्ष व्यतीत हो गये । एक समय वे पुरिमताल नगर के शकटमुख उद्यान में पधारे । फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन भगवान तेले का तप करके वट वृक्ष के नीचे कायोत्सर्ग में स्थित हुए। उत्तरोत्तर परिणामों की शुद्धता के कारण घातिकर्मों का क्षय करके भगवान ने केवलज्ञान केवलदर्शन प्राप्त किया। देवों ने केवलज्ञान महोत्सव करके समवशरण की रचना की । देव-देवी, मनुष्य-स्त्री, तिर्यच भादि बारह प्रकार की परिषद प्रभु का उपदेश सुनने के लिये आई। उस समय भगवान पैतीस सत्य वचनातिशय और चौंतीस अतिशयों से सम्पन्न थे। वे ये हैं सत्य वचन के पैंतीस अतिशय ये हैं-- (१) संस्कारवत्व-संस्कृत आदि गुणों से युक्त होना अर्थात् वाणी का भाषा और व्याकरण की दृष्टि से निर्दोष होना। । । (२) उदातत्त्व-उदात्तस्वर अर्थात् स्वर का ऊँचा होना। (३) उपचारोपेतत्व-ग्राम्य-दोष से रहित होना।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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