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________________ तीर्थकर चरित्र (8) गम्भीरशब्दता-मेघ की तरह आवाज में गम्भीरता होना । (५) अनुनादित्व-आवाज का प्रतिध्वनि सहित होना । (६) दक्षिणत्व-भाषा में सरलता होना । (७) उपनीतरागत्व-मालव केशिकादि ग्राम राग से युक्त होना अथवा स्वर में ऐसी विशेषता होना कि श्रोताओं में व्याख्येय विषय के प्रति बहुमान के भाव उत्पन्न हो । (८) महार्थत्व-अभिधेय अर्थ में महानता एवं परिपुष्टता का होना। थोड़े शब्दों में अधिक अर्थ कहना । (९) अव्याहतपौर्वापर्यत्व-वचनों में पूर्वापर विरोध न होना । (१०) शिष्टत्व-अभिमत सिद्धान्त का कथन करना अथवा वक्त की शिष्टता सूचित हो ऐसा अर्थ कहना । (११) असंदिग्धत्व-अभिमत वस्तु का स्पष्टतापूर्वक कथन करना जिससे कि श्रोताओं के दिल में सन्देह न रहें । (१२) अपहृतान्योत्तरत्व-वचन का दूषण रहित होना और इसलिए शंका समाधान का मौका न आने देना । (१३) हृदयग्राहित्व-वाच्य अर्थ को इस ढङ्ग से कहना कि श्रोता का मन आकृष्ट हो एवं वह कठिन विषय भी सहज ही में समझ जाय । (११) देशकालाव्यतीतत्व-देशकाल के अनुरूप अर्थ कहना । (१५) तत्त्वानुरूपत्व-विवक्षित वस्तु का जो स्वरूप हो उसीके अनुसार उसका व्याख्यान करना । (१६) अप्रकीर्णप्रसनत्व-प्रकृत वस्तु का उचित विस्तार के साथ व्याख्यान करना । अथवा असम्बद्ध अर्थ का कथन न करना एवं सम्बद्ध अर्थ का भी अत्यधिक विस्तार न करना । (१७) अन्योन्यप्रगृहोतत्व-पद और वाक्यों का सापेक्ष होना । (१८) अभिजातत्व-भूमिकानुसार विषय और वक्ता का होना । (१९) अतिस्निग्धमधुरत्व-भूखे व्यक्ति को जैसे घी, गुड़ आदि परम सुखकारी होते हैं उसी प्रकार स्नेह एवं माधुर्य परिपूर्ण वाणी का श्रोता के लिये परम सुखकारी होना।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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