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________________ तीर्थकर चरित्र कुमार भगवान के हाथों में इक्षुरस डालने लगा। अतिशय के कारणरस की एक बूंद भी नीचे नहीं गिरी। भगवान का कृश तथा उत्तम शरीर स्वस्थ नथा शान्त हो गया । इक्षुरस का पान करते हुए उन्हे किसी ने देखा नहीं क्योंकि भगवान का यह जन्मजात अतिशय था। ___-उसी समय भगवान के पारणे से होनेवाले हर्ष के कारण देवों ने गन्धोदकादि पांच वर्ण के पुष्पों की वृष्टि की। गम्भीर मधुरस्वर वाली दुंदुभियाँ वजाई, दिव्य वस्त्रों से बनी पताकाएँ फहराई। अपनी कान्ति से दिशाओं को प्रकाशित करने वाले साढ़े बारह करोड़ रत्नों की वृष्टि की । जय-जय शब्द करके दान का माहात्म्य गाया। कुछ देवता घर के आंगन में उतर कर श्रेयांसकुमार की प्रशंसा करने लगे। दूसरेलोग भी श्रेयांसकुमार के घर पर इकट्ठे हो गए और पूछने लगे-- भगवान के पारने की विधि आपने कैसे जानी ? श्रेयांसकुमार ने उत्तर दिया-जाति स्मरण ज्ञान से । लोगों ने फिर पूछा-जाति स्मरण किसे कहते हैं ? उससे पारणे की विधि कैसे जानी जाती है ? उसने उत्तर दिया-जाति स्मरण का अर्थ है पूर्वजन्म का स्मरण और यह मतिज्ञान का एक भेद है । इससे मैने पिछले चे आठ भव जान लिये जिनमें मैं भगवान के साथ रहा था । वर्तमान भव से पहले नवें भव में मेरे प्रपितामह भगवान ऋषभदेव का जीव ईशानकल्प देवलोक में ललितांग नाम का देव था । मैं उनकी स्नेहपात्री स्वयंप्रभा नाम की देवी थी। इस प्रकार स्वर्ग और मृत्युलोक में बारी-बारी से भाठ भवों तक मैं प्रभु के साथ-साथ रहा हूँ। इन भव से तीसरे भव में विदेह क्षेत्र में भगवान के पिता वज्रसेन नामक तीर्थङ्कर थे। उनसे प्रभु ने दीक्षा ली । भगवान के बाद मैने भी दीक्षा ग्रहण की। उनके पास दोक्षित होने के कारण मै दान आदि की विधि को जानता हूँ, केवल इतने दिन मुझे पूर्वभव का स्मरण नहीं था । आज भगवान को देखने से जातिस्मरण हो गया । पूर्व भव की सारी बाते मैं जान गया इसीलिये भगवान का पारणा विधिपूर्वक
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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