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________________ आगम के अनमोल रत्न दूसरे दिन तीनों ने राज्य सभा में अपने अपने स्वप्न का वृतान्त कहा । स्वप्न के वास्तविक फल को बिना जाने सभी अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार कुछ कहने लगे । इस बात में सभी का एक मत था कि श्रेयांसकुमार को कोई महान लाभ होगा। राजा सेठ तथा सभी दरवारी अपने अपने स्थान पर चले गये। श्रेयांसकुमार अपने सतमंजिले महल की खिड़की में आकर बैठ गया। जैसे ही उसने बाहर दृष्टि डाली भगवान ऋषभदेव को पधारते हुए देखा। वे एक वर्ष की कठोर तपस्या का पारण करने के लिये भिक्षार्थ घूम रहे थे। शरीर एकदम सूख गया था। उस समय के भोले लोग भगवान को अपना राजा समझकर अपने-अपने घर निमन्त्रित कर रहे थे। कोई उन्हें भिक्षा में धन देना चाहता था, कोई कन्या । इस बात का किसी को ज्ञान न था कि भगवान इन सब चीजों को त्याग चुके हैं । ये वस्तुएँ उनके लिये व्यर्थ हैं । उन्हें तो लम्बे उपवास का पारणा करने के लिये शुद्ध आहार की आवश्यकता है। श्रेयांसकुमार उन्हें देखकर विचार में पड़ गया । उसी समय उसे जाति स्मरण ज्ञान हो गया। थोड़ी देर के लिये उसे मूर्छा मा गई । कपुर और चन्दन वाले पानी के छोटे देने पर होश आया । ऊपर वाले महल से उतर कर वह नीचे आंगन में आ गया। इतने में भगवान भी उसके द्वार पर आ गये । उसी समय कोई व्यक्ति कुमार को भेट देने के लिये इक्षुरस से भरे घड़े लाया । श्रेयांसकुमार ने एक घड़ा हाथ में लिया और सोचने लगा--मै धन्य हूँ जिसे इस प्रकार की समस्त सामग्री प्राप्त हुई है। सुपात्रों में श्रेष्ठ भगवान तीर्थङ्कर स्वयं भिक्षुक बनकर मेरे घर पधारे हैं, निर्दोष इक्षुरस से भरे हुए घड़े तैयार हैं । इनके प्रति मेरी भक्ति भी उमड़ रही है । यह कैसा शुभ अवसर है ? यह सोचकर भगवान को प्रणाम करके उसने निवेदन किया---यह आहार सर्वथा निर्दोष है। अगर आपके अनुकूल हो, तो ग्रहण कीजिए । भगवान ने मौन रहकर हाथ फैला दिये । श्रेयांस
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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