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________________ .६९० आगम के अनमोल रत्न एक बार इन्द्र ने अपनी देव सभा में सुलसा की प्रशंसा करते हुए कहा-नाग रथिक की पत्नी सुलसा को कभी क्रोध नहीं आता। 'उसको धर्म से कोई भी देव या मनुष्य विचलित नहीं कर सकता। 'इन्द्र द्वारा की गई प्रशंसा को सुनकर हरिणैगमेषी देव सुलसा की परीक्षा करने के लिये मृत्युलोक में आया। दो साधुओं का रूप बनाकर वह सुलसा के घर गया । मुनियों को देखकर सुलसा अत्यन्त प्रसन्न हुई । उसने मुनियों को वन्दन किया और आहार लेने के लिये आग्रह किया । मुनियों ने कहा-हमें ग्लान साधुओं के उपचार के लिये लक्षपाक तैल की आवश्यकता है। लाती हूँ।' कह कर सुलसा प्रसन्नभाव से तैल लाने के लिये घर में गई । जैसे ही उसने तेल के भाजन को हाथ में लिया देव माया से वह हाथ से छूट कर फूट गया । इस प्रकार दुसरा और तीसरा भाजन भो नीचे गिर कर फूट गया । इतना नुकसान होने पर भी सुलसा के मन में जरा भी क्रोध उत्पन्न नहीं हुआ किन्तु उसे मनि के पात्र में तेल न पहुँचने का अत्यन्त दुःख हो रहा था। देव उसकी मनोदशा को समझ गया । सुलसा की इस अपूर्वक्षमाशीलता को देखकर हरिणैगमेषी देव बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने अपना असली रूप प्रक्ट कर कहा-देवी ! सचमुच तुम धन्य हो । शकेन्द्र ने जैसी तुम्हारी प्रशंसा की थी वास्तव में तुम वैसी ही क्षमाशील और धर्मपरायण हो । देव ने प्रसन्न होकर उसे ३२ गोलियां देते हुए कहा-एक एक गोली खाती जाना । तुम्हें इसके प्रभाव से ३२ वीर पुत्रों की प्राप्ति होगी। इतना कह कर देव अन्तर्धान हो गया । सुलसा ने सोचा कि ३२ बार गोली खाने से ३२ बार पुत्र प्रसव का कष्ट उठाना पड़ेगा । अतः यदि सब गोली एक साथ ही खालेंगी तो मुझे ३२ लक्षण वाला गुणी पुत्र होगा । ऐसा विचार कर उसने ३२ गोलियां एक साथ खालीं । उनके प्रभाव से सुलसा के बत्तीस गर्भ रह गये और धीरे धीरे बढ़ने लगे। प्रसव के समय उसे असत्य वेदना होने लगी। उसने वेदना शान्ति के लिये हरिणैगमेषी देव
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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