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________________ आगम के मनमोल रत्न ..mor.wwwwwwwwwmmar. भगवान-जयन्ती ! पाचों इन्द्रियों के वशीभूत जीव आयुष्य को छोड़कर शेष सातों कर्म-प्रकृतियाँ बांधते हैं। पूर्वबद्ध शिथिल बन्धन को गाढ वन्धन और लघु स्थिति को दीर्घ स्थिति का कर देते हैं, इस प्रकार कर्मों की स्थिति को बढ़ाकर चतुर्गतिरूप ससार में भटका करते हैं। इसी प्रकार क्रोध के वशीभूत जीवों के सम्बन्ध में भी प्रश्न उसने पूछे और भगवान ने उन सब के सम्बन्ध में भी यही उत्तर दिया। प्रश्नोत्तरों से जयन्ती को अत्यन्त सन्तोष हुआ। उसने हाथ जोड़कर भगवान से निवेदन किया-भगवन् ! कृपया मुझे प्रवज्या देकर अपने भिक्षुणी सघ में दाखिल कीजिए। भगवान महावीर ने जयन्ती की विनती स्वीकार कर उसे प्रमज्या दे दी और भिक्षुणी संघ में सम्मिलित कर लिया। जयन्ती ने दीक्षा लेने के पाद श्रुत का अध्ययन कर ख्य तप किया और अन्त में मोक्ष प्राप्त किया । महासती सुलसा राजगृह नगर में राजा श्रेणिक राज्य करता था । उसकी रानी का नाम सुनन्दा था। रानी सुनन्दा से उत्पन्न राजकुमार- अभय महाराज का मंत्री था । उसी नगर में महाराजा प्रसेनजित् का सम्बन्धी नाग नामका रथिक रहता था । वह महाराज श्रेणिक का विश्वासपात्र था । उसके श्रेष्ठ गुणोंवाली सुलसा नाम की पत्नी थी। वह धर्मनिष्ठा व सम्यक्त्व में अत्यन्त दृढ़ थी। उसे कभी कोष नहीं आता था। दोनों पति पत्नी के सुखी होने पर भी उन्हें सन्तान का अभाव सदा खटकता रहता था । इसे वे अपने अशुभकर्म का उदय मानकर दान, त्याग और तपस्या आदि धर्म कार्यों में विशेष अनुराग रखने लगे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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