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________________ आगम के अनमोल रत्न का स्मरण किया । हरिणैगमेषी ने 'प्रसन्न होकर सुलसा की पीड़ा शान्त करदी। उसने ३२ सुन्दर पुत्रों को जन्म दिया । नाग रथिक की चिर अभिलाषा पूरी हुई। योग्य अवस्था होने पर सभी को धर्म कर्म और शस्त्रकला में निपुण बनाया । युवावस्था में उन सभी का सुन्दर कन्याओं के साथ विवाह कर दिया गया।'' कालान्तर में ये महाराज श्रेणिक के विश्वासपात्र अंग रक्षक बने । श्रेणिक जब सुज्येष्ठा का अपरहरण करने गया था उस समय वैशाली के राजा चेटक के बाणों से ३२ ही पुत्रों को मृत्यु हो गई। सुलसा को अपने पुत्रों की मृत्यु का समाचार सुनकर वड़ा दुःख हुमा । एक साथ बत्तीस पुत्रों का वियोग उसे असह्य हो गया । वह विलाप करने लगी। मंत्री अभयकुमार को जब इस बात का पता लगा तो वह स्वयं सुलसा के पास आया और उसे सांत्वना दी । सुलमा ने पुत्र वियोग के बाद अपने मन को अधिक धर्म में दृढ़ किया । वह निरन्तर भगवान के उपदेश का स्मरण करती हुई अपना समय धर्मकार्य में विताने लगी। - कुछ दिनों बाद भगवान महावीर चम्मा नगरी में पधारे। नगरी के बाहर देवों ने समवशरण की रचना की। भगवान ने धर्मोपदेश दिया । देशना के अन्त में अम्बड़ नाम का विद्याधारी श्रावक खड़ा हुमा । विद्या के प्रभाव से वह कई प्रकार के रूप पलट सकता था। वह राजगृही का रहने वाला था । उसने कहा-प्रभो! आरके उपदेश से मेरा जन्म सफल होगया । अब मै राजगृही जा रहा हूँ। भगवान् ने फरमाया-राजगृही में सुलसा नाम वाली श्राविका है वह धर्म में परम दृढ़ है। अम्बद ने मन में सोचा सुलसा श्राविका बढी पुण्यशाली है, जिसके लिए भगवान् स्वयं इस प्रकार कह रहे हैं। उसमें ऐसा कौनसा गुण है जिससे भगवान ने उसे धर्म में दृढ़ बताया । मै उसके
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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