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________________ आगम के अनमोल रत्न ५९७ पर विलाप से बिछुड़ा हुभा देवदत्त क्या पुनः मिल सकता था ? भतः उसने अपने समस्त नौकर चाकरों को पुत्र की खोज के लिये चारों ओर नगर में भेजा और स्वयं भी निकल पड़ा। नगर का कोना-कोना खोज डाला लेकिन देवदत्त का कहीं भी पता नहीं लगा । अन्त में वह कीमती भेंट लेकर नगर रक्षक कोतवाल के पास पहुँचा और पुत्र के खो जाने का सारा हाल कह सुनाया। कोतवाल वच्चे का पता लगाने के लिये तैयार हुभा । उसने कवच धारण किया। धनुषबाण आदि हथियार सम्हाले और कुछ 'सिपाहियों को साथ में लेकर बच्चे की खोज में चल पड़ा । साथ में 'धन्ना सार्थवाह भी हो गया। हँढ़ते हूँढ़ते वे लोग जीर्ण उद्यान में पहुँचे और वहां उन्होंने ‘एक पुराने कुएँ में बच्चे की लाश को पड़ा पाया । कोतवाल ने लाश कुएँ से निकाल कर धन्य सार्थवाह को दे दी और कोतवाल और उसके अन्य सीपाहि चोर के पद चिह्नों का अनुसरण करते हुए मालुकावन में पहुंचे और वहाँ अत्यन्त सावधानी के साथ शस्त्रास्त्र सम्भाले हुए चोर की इधर-उधर तलाश करने लगे। चोर मालकाकच्छ के एक कोने में छिण हुआ था। कोतवाल ने उसे पकड़ लिया और मजबूत बन्धनों से बांधकर उसे खूब पीटा । चोर की तलाशी लेने के बाद बालक के गहने भी उसके पास मिल गये । उन आभरणों को उसी के गले में पहना कर नगर के सभी राजमार्गों पर उसे धुमाया, कोड़े, वेंत आदि से खूब पीटा और उसके ऊपर राख, धूल, कूड़ा, कचड़ा डालते हुए तेज आवाज से इस प्रकार की घोषणा करने लगे। हे नगर जनों ! यह विजय चोर मास लोलुपी, वालघातक और हत्यारा है। 'इसे यह सजा निष्कारण नहीं दी जा रही है किन्तु यह अपने ही किये हुए दुष्कृत्यों को भोग रहा है। इस प्रकार की बार वार घोषणा करते कोतवाल ने चोर को ले जाकर उसे काठ की बेड़ियों में जकड़ दिया। उसका खाना पीना बन्द करवा दिया और तीनों समय कोड़ों से पीटा जाने लगा।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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