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________________ आगम के अनमोल रत्न किसी समय धन्य सार्थवाह से राज्य का एक छोटा सा अपराध 'हो गया । राजा ने उसे गिरफ्तार करवा कर विजय चोर के साथ कारागार में डाल दिया । विजय चोर को बेड़ियों के साथ उसे भी जकड़ दिया । धन्य सार्थवाह की स्त्री भद्रा अपने पति के लिये उत्तम-उत्तम भोजन बनाती और उसे भोजनडिब्बे (टिफन) में बन्द करती और उस पर मुहर लगाती, लोटे में सुगंधित जल भरती और उसे पंथक के हाथ जेल में भेजती । पंथक जेल में जाकर पहले जल से अपने स्वामी का हाथ धुलवाता, और फिर डब्बा खोलकर भोजन परोसता और उन्हें भोजल खिलाकर घर लौट आता ।। एक दिन धन्य सार्थवाह के उत्तम भोजन को देखकर विजय चोर धन्य सार्थवाह से बोला-धन्य ! अपने भोजन में से मुझे भी थोड़ा खाने को दो । धन्य बोला-विजय ! मेरा बचा हुआ भोजन भले कुत्ते या कौवे खा जाय, या मै इसे उकरड़ी (कूड़ा घर) पर फिकवा दूं, किंतु क्सिी हालत में तुझ जैसे पुत्र हत्यारे को, पापी को कभी भी यह भोजन नहीं दूंगा । विजय चोर ने सेठ से बहुत अनुनय विनय की लेकिन धन्य ने उसे भोजन का एक कण भी नहीं दिया । भोजन करने के बाद धन्य को शौच जाने की इच्छा हुई। उसने विजय से कहा-विजय ! मुझे शौच जाना है । अतः हम दोनों एकान्त में चलें । सेठ के कथन पर विजय ने कुछ भी ध्यान नहीं दिया । दूसरी बार सेठ ने पु: विजय चोर से यही बात कही फिर भी उसने उत्तर नहीं दिया । सेठ को शौच इतनी तीव्र लगी थी कि वे उसे रोक नहीं सके । उन्होंने पुनः विजय चोर से अत्यन्त नम्र भाव से साथ में चलने की विनती की । बार बार सेठ की प्रार्थना पर विजय बोला-सेठ ! आप भोजन करते हैं इसलिए आपको शौच जाना होता है । लेकिन मै तो कई दिनों का भूखा हूँ। अतः मुझे शौच नहीं जाना है । जब मैंने आपसे भोजन का कुछ हिस्सा मांगा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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