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________________ आगम के अनमोल रत्न आदि संस्कार सम्पन्न हुए और देव कृपा से उत्पन्न होने के कारण उसका नाम देवदत्त रक्खा गया । भद्रा ने अपनी मनौती के अनुसार नाग आदि देवताओं का पूजन किया और देवनिधि की वृद्धि की । देवदत्त बालक को खिलाने के लिये पथक दास चेटक को नियुक्त किया। भद्रा अपने पुत्र को नहलाती धुलाती, नजर से बचाने के लिये मसि आदि का तिलक करती और अलंकार, आभूषण आदि से सजाकर उसे पंथक को सौप देती । पंथक प्रतिदिन बहुत से बालक-बालिकाओं के साथ देवदत्त को खिलाया करता था । तरह तरह के खेल द्वारा बच्चों का अच्छा मनोरंजन करता था। एक दिन भद्रा ने वालक देवदत्त को नहलाया और सुन्दर, वस्त्र एवं कीमती आभूपण पहनाये और खेलने के लिये पंथक के साथ उसे भेज दिया । पंथक बालक को ले राजमार्ग पर भाया और उसे एक तरफ बैठा कर अन्य बालक बालिकाओं के साथ खेल खेलने में मशगूल हो गया । इतने में विजय नामक चोर वहाँ आया। पंथक को भन्य बालकों के साथ खेलता देख, झट से देवदत्त को गोदी में उठाकर अपने वस्त्र में छिपा लिया और शीघ्रता से राजगृह से निकल कर जीर्ण उद्यान की ओर भाग गया । टेढ़े मेढ़े चक्करदार रास्तों से होता हुआ मालुकाकच्छ के भग्न कूप के पास पहुँचा । बालक के आभूषण उतार कर, उसे मारकर कुएँ में फेक दिया और स्वयं जंगल में छिपकर बैठ गया। र थोड़ी देर के बाद जब पंथक ने उधर देखा तो बच्चा गायब । उसने इधर- उधर बहुत देखा-भाला किन्तु बच्चे का, कहीं भी पता नहीं लगा । अन्त में वह रोता-पीटता धन्य सार्थवाह के घर पहुँचा । उसने धन्ना सार्थवाह के पांव पकड़कर सब हाल कह सुनाया । धन्य यह दारुण समाचार सुनते ही एकदम बेहोश होकर भूमि पर गिर पड़ा। होश आने पर दोनों पति पत्नी हृदय विदारक विलाप करने लगे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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