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________________ ૧૨૨ आगम के अनमोल रत्न ने आदेश जारी कर उन चाण्डाल पुत्रों का नगर प्रवेश निषिद्ध कर दिया । कुछ समय के बाद कौमुदी महोत्सव आया और नगरी के लोग बड़ी धूम धाम से उत्सव की तैयारियां करने लगे। चित्र और सम्भूति राजाज्ञा की परवाह न कर अपनी नगरी लौटे, और दूसरों को गाते देख कर वस्त्र से अपना मुँह ढंक कर उन्होंने गाना आरम्भ कर दिया । चाण्डाल पुत्रों का गाना सुनते ही चारों ओर से लोग आ आकर एकत्रित होने लगे । जब मालूम हुआ कि ये वही मातंगकुमार है तो लोगों ने उन्हें लात घूसा थप्पड़ आदि से बुरी तरह पीटकर बाहर निकाल दिया । चाण्डाल पुत्रों को बड़ा दुःख हुआ। उन्होंने सोचा, "हमारे रूप, यौवन, कला, कौशल आदि को धिक्कार है जो चाण्डालकुल में उत्पन्न होने के कारण हमारे सव गुणों पर पानी फिर गया ? ऐसे जीने से तो मरना अच्छा है ?" ऐसा सोचकर दोनों भाई मरने का निश्चय, कर दक्षिण दिशा की भोर चल दिये। चलते-चलते वे एक पहाड़ पर पहुँचे और वहाँ से गिर कर प्राण त्याग करने का विचार करने लगे ।। संयोग वश उस पहाड़ पर एक मुनि ध्यानावस्था में बैठे थे। मुनि ने आत्म हत्या के लिये उद्यत दोनों मातंग-पुत्रों को देखा। उन्हें बुलाकर मुनि ने उपदेश दिया। मुनि के उपदेश से प्रभावित हो कर चित्तसम्भूति ने भागवती दीक्षा ग्रहण कर ली। अब वे मुनि बम कर श्रुत का अध्ययन करते हुए कठोर तप करने लगे। तपस्या के कारण उन्हें अनेक प्रकार, की लब्धियाँ प्राप्त हुई। चित्र-संभूति अब स्वतंत्र रूप से विहार करने लगे । एक समय वे विहार करते-करते हस्तिनापुर पहुंचे और नगर के बाहर उद्यान में ठहरे । संभूत मुनि पारणा के लिये नगर में गये वहाँ नमुचि ने सम्भूत को पहचान लिया । मंत्री ने सोचा-यह साधु मेरे विषय में:
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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