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________________ आगम के अनमोल रत्न पर गङ्गा नदी के किनारे हंस रूप से उत्पन्न हुए । कुछ समय के बाद अपने आयु कर्म को समाप्त करके वे दोनों वाराणसी नगरी में भूदत्त नामक चांडाल के घर में पुत्र रूप से उत्पन्न हुए । उनमें एक का नाम चित्त और दूसरे का नाम संभूति रखा गया। उस समय वाराणसी में शंख नाम का राजा राज्य करता था । उसका नमुचि नाम का मन्त्री था । उस मन्त्री ने एक समय राजा की रानी के साथ विषय सेवन किया । राजा को जब उसके इस दुष्कृत्य का पता लगा तो उसने चाण्डालों के मुखिया भूदत्त को बुलाकर गुप्त रूप से नमुचि के वध करने की आज्ञा दी । भूदत्त नमुचि को अपने घर ले आया और कहा"यदि तुम मेरे पुत्रों को पढ़ाना स्वीकार करो तो मै तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ।" मन्त्री ने यह स्वीकार कर लिया, और वह भोयरे भूमिगृह) में रह कर चाण्डाल के पुत्र चित्त और संभूति को पढ़ाने लगा। यहां पर भी मन्त्री नमुचि ने चाण्डाल की पत्नी से व्यभिचार किया । भूदत्त चाण्डाल ने व्यभिचारी नमुचि का वध करने का निश्चय किया किन्तु दोनों चाण्डाल पुत्रों ने अपना विद्यागुरु जानकर उसे गुप्त रूप से भगा दिया । वह हस्तिनापुर पहुँच कर चक्रवर्ती सनत्कुमार का मन्त्री बन गया । चित्र और सम्भूति नृत्य, गीत आदि कलाभों में निष्णात हो गये थे । वे वेणु, वीणा आदि बजाते और गंधर्व गाते हुए इधर उधर घूमने लगे। एक बार वाराणसी में मदन महोत्सव आया और लोग अपनी-अपनी टोलियां लेकर नाचते गाते हुए निकले । चित्र और संभूति भी अपनी टोली लेकर चले । दोनों का कण्ठ इतना मधुर था कि उन्हें सुनकर नगरी के सब लोग विशेषकर तरुण स्त्रियाँ इकट्ठी हो जाती और मन्त्रमुग्ध की तरह उनका गान सुनती। यह खबर जब नगर के ब्राह्मणों के पास पहुंची तो उन्होंने राजा से जाकर कहा'राजन् , इन चाण्डालपुत्रों ने नगरी के समस्त लोगों को भ्रष्ट कर दिया है, अतएव इन्हें नगर से बाहर निकाल दिया जाय ।" राजा
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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