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________________ आगम के अनमोल रत्न ५१३ दूसरों से वहेगा, अतएव उसने भादमियों से उसे खूब पिटवाया । नमुचि के इस नीच व्यवहार से संभूत मुनि को वडा क्रोध आया। वे नगर के बाहर आये और सारे नगर को भस्मसात् करने के लिये उन्होंने अपने मुख से तेजोलेश्या निकाली। पहले उन्होंने अपने मुख से भयंकर धूम निकाला और उसके बाद भाग उगलना प्रारंभ किया । यह देख चित्त ने सभूत मुनि को बहुत समझाया और उसके मुख पर अपना हाथ रख दिया। उससे अग्नि तो रुक गई परन्तु धूम तो सारे नगर में फैल गया। यह देख सनत्कुमार चक्रवर्ती बहुत भयभीत हुभा । वह अपनी रानी श्रीदेवी के साथ सम्भूत मुनि के पास भाया और उन्हें वन्दन कर क्षमा याचना करने लगा । नमस्कार करते समय रानी के केशों में लगे हुए गोशीर्ष चन्दन के तैल की एक बूँद सम्भूति मुनि के चरणों पर गिर पड़ी जिससे सम्भूति मुनि का क्रोध शांत होगया । मुनि ने जब आंखें खोलीं तो अपने सामने अपूर्व सुन्दरी को पाया । उसे देख सम्भूति का मन चंचल हो उठा । उसने अपने तप का निदान किया "मे भी अपने तप के फलस्वरूप चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त करूँ ।" चित्त मुनि ने उसे बहुत समझाया किन्तु सम्भूत मुनि ने निदान पूर्वक अपनी देह का त्याग किया और मरकर काम्पिल्यपुर नगर के राजा ब्रह्मभूति को रानी चूलनी की कुक्षि में चतुर्दश स्वप्न के साथ पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ । माता पिता ने उसका नाम ब्रह्मदत्त रखा। चित्तमुनि ने अन्तिम समय मे शुद्धभाव से कर देह का त्याग किया। मरकर वे प्रथम स्वर्ग में देव बने । वहाँ की आयु पूरी कर चित्तमुनि का जीव पुरिमताल नगर के एक इभ्यश्रेष्ठी के घर पुत्र रूप से उत्पन्न हुआ । युवा होने पर चित्त ने दीक्षा ग्रहण की एवं कठोर तप करते हुए उसे अवधिज्ञान उत्पन्न होगया । वह पृथ्वी पर विचरने लगा । संलेखना संथारा राजा ब्रह्मभूति की अचानक मृत्यु होगई । ब्रह्मदत्त उम्र में छोटा होने से दीर्घपृष्ट नामक सामन्त ब्रह्मभूति के राज्य का संचालन करने ३३
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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