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________________ आगम के अनमोल रन __ हे आर्यो ! मिथ्यात्व आदि दोषों से रहित और भात्म प्रसन्न लेश्या से युक्त धर्म एक जलाशय है और ब्रह्मचर्य एक प्रकार का शान्ति-तीर्थ । इसमें स्नान करके मै विमल, विशुद्ध और सुशीतल होता हूँ और ठीक वैसे ही कर्मों का नाश करता हूँ। तत्त्वज्ञानियों ने यह स्नान देखा है । यही वह महास्नान है 'जिसकी ऋषियों ने प्रशंसा की है। जिस स्नान से महर्षिलोग विमल और विशुद्ध होकर उत्तम स्थान मोक्ष को प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार हरिकेशबल मुनि ब्राह्मणों को प्रतिबोधित करके अपने स्थान पर चले गये और वहाँ विशिष्ट तपस्या की आराधना से कर्मो का क्षय कर उन्होंने मुक्ति प्राप्त की तथा ब्राह्मणों ने भी प्रतिबोधित होकर आत्म कल्याण का मार्ग ग्रहण किया । चित्र संभूति मुनि साकेतपुर नाम के नगर में चन्द्रावतंसक राजा के पुत्र मुनिचन्द्र ने सागरचन्द्र नाम के मुनि के पास दीक्षा ग्रहण की । दीक्षा के बाद 'विहार करते करते किसी वन में मार्ग भूल जाने से वे वहीं ही इधर उधर भ्रमण करने लगे । भटकते हुए वे गोपालों की की बस्ती में 'पहुँचे । वहाँ चार गोपालों ने उनकी बड़ी भक्ति की और दूध आदि बहराया । मुनि ने उन गोपालों को उपदेश दिया । मुनि के उपदेश से उन्होंने दीक्षा ग्रहण की । इन चारों में से दो ने शुद्ध संयम का पालन किया और दो ने घृणापूर्वक संयम पाला । वे चारों मर कर देवलोक में उत्पन्न हुए। जिन दो ने घृणापूर्वक संयम का पालन किया था वे दोनों देवलोक से चवकर शंखपुर नगर में शाडिल विप्र की यशोमती नाम की दासी के वहाँ पुत्र रूप से उत्पन्न हुए । वहाँ से फिर वे दोनो भाई सर्प के दंश से मर कर कालिंजर पर्वत में मृग रूप से उत्पन्न हुए । वहाँ पर भी किसी व्याव के द्वारा मारे जाने
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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