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________________ आगम के अनमोल रत्न ५०९ शुद्धि क्यों चाहते हो.? बाह्यशुद्धि की खोज इष्ट नहीं है, ऐसा तत्वज्ञों ने कहा है। कुश, यूप, तृण, काष्ठ, और अग्नि तथा सायं-प्रात. जल का स्पर्श करते हुए और प्राणियों की हिंसा करते हुए मन्दबुद्धि लोग पुनः. पुनः पाप का संचय करते हैं । यह सुनकर ब्राह्मणों ने कहा हे मुने ! हमें क्या करना चाहिये, कैसा यज्ञ करें जिससे कर्मों को दूर कर सकें । हे यज्ञ पूजित संयती ! तत्वज्ञ पुरुषों ने सुन्दर यज्ञ का प्रतिपादन किस प्रकार किया है ? मुनि ने उत्तर देते हुए कहा-इन्द्रियों का दमन करने वाले साधु पुरुष छ काय के जीवों को पीड़ा नहीं पहुंचाते, मृषावाद और अदत्त का सेवन नहीं करते तया परिग्रह, स्त्री, मान और माया को त्याग करके विचरते हैं। जो पाच महावतों से हिंसादि आश्रव के रोधक हैं, जो ऐहिकजीवन की आकाक्षा नहीं करते, जो काया की ममता छोड़ चुके हैं और जो देह की सार-संवार वृत्ति से पर है, वे ही महाविजय के. लिये श्रेष्ठ यज्ञ करते हैं। हे भिक्षो ! आपको अग्नि कौनसी है, अग्निकुण्ड कौनसा है, कुडछी: कण्डा, लकड़ियाँ कौनसी हैं ? शान्ति पाठ कौनसा है और किस होम. से अग्नि को प्रसन्न करते हैं ? हे मार्यो ! तप रूप अग्नि, जीव भग्नि का स्थान, और मनः वचन काया के शुभ व्यापार कुडछी रूप हैं । शरीर कण्डा रूप और आठ कर्म लकड़ी .रूप हैं । सयमचर्या शान्ति पाठ रूप है। मैं ऐसा यज्ञ करता हूँ जो ऋषियों द्वारा प्रशंसित है । हे यज्ञ पूजित ! आपका जलाशय कौनसा है ? शान्तितीर्थ कौनसा है ? मल त्यागने के लिए आप स्नान कहाँ करते हैं । यह हम जानना चाहते हैं आप बताइये ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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