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________________ ५९६ आगम के अनमोल रत्न ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया । लोक-निन्दा से बचने के लिये वह बालक को अपने नाम को अंगूठी पहना एवं एक सुन्दर कम्बल में लपेट कर स्मशान में छोड़ आई। स्मशान पालक ने बालक को उठाकर अपने स्त्री को सौंप दिया । चांडाल की स्त्री उस सुन्दर बालक को देखकर बहुत प्रसन्न हुई और वह बालक का लाइ प्यार से पालन करने लगी। चाण्डाल ने बालक का नाम अवकीर्णपुत्र रखा । अवकीर्ण को शरीर में सूखी खाज आती थी। वह अपने साथी बालकों से खाज खुजलाने को कहता था । अतः उसका नाम करकण्डू पड़ गया । करकण्डू बड़ा होकर स्मशान की रक्षा करने लगा। एक बार करकण्डू स्मशान में पहरा दे रहा था। उसी समय उधर से दो साधु निकले । आपस में बातचीत करते समय एक साधु के मुँह से निकला - 'बाँस की इस झाड़ी में एक सात गांठ वाली लकड़ी है । वह जिसे प्राप्त होगी उसे राज्य मिलेगा ।" इस बात को करकण्डू तथा रास्ते में चलते ब्राह्मण ने सुना । दोनों लकड़ी लेने चले । दोनों ने उसे एक साथ छुमा । ब्राह्मण कहने लगा-इस लकड़ी पर मेरा अधिकार है और करकण्डू कहने लगा मेरा। दोनों में झगड़ा खड़ा हो गया । कोई अपने अधिकार को छोड़ना नहीं चाहता था। करकण्डू बलवान था उसने ब्राह्मण से लकड़ी छीन ली तब ब्राह्मण न्यायालय में गया और उसने करकण्ड की शिकायत की। न्यायाधीश ने करकण्डू को बुलाकर उसे लकड़ो वापस कर देने को कहा। करकण्डू ने कहा, "मुझे इस लकड़ी के प्रभाव से राज्य मिलने वाला है अतः मै लकड़ी को नहीं दूंगा । न्यायाधीश करकण्डू की इस बात पर हंस पड़ा और चोला-"अगर तुझे राज्य मिल जायगा तो इस ब्राह्मग को एक गाव इनाम में दे देना।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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