SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 529
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आगम के अनमोल..रत्न..... . . . tee nimanna हाथी दौड़ता-दौड़ता घने जंगल में पहुँचा । उसे प्यास लगी। वह पानी पीने के लिये एक जलाशय में उतरा । उस समय हाथी का होदा एक वृक्ष को शाखा के साथ लग गया । रानी उसे पकड़ कर नीचे उतर आई । हाथी पानी पीकर आगे चलता बना और पद्मावती वहीं रह गई। अब वह अकेली और असहाय इधर उधर भटकने लगी। चारों ओर से सिंह व्याघ्र वगैरह जंगली प्राणियों के भयंकर शब्द सुनाई दे रहे थे। उस निर्जन वन में एक अवला के लिये अपने प्राणों को बचाना बहुत कठिन था । पद्मावती ने अपने जीवन को सन्देह में पडा जानकर सागारी सं याग कर लिया । और अपने पापों के लिये आलोचना करने लगी यदि मैने मन वचन काया से इस भव में या पर भव में पृथ्वी पानी, अग्नि, वायु, आदि छ कायों के जीवों की विराधना की हो तो मेरा पाप मिथ्या होवे । यदि मैने किसी से मम भेदी वचन कहे हों, किसी की गुप्त बात प्रक की हो, धरोहर रखी हो, तथा किसी को कष्ट दिया हो तो मेरा पाप निष्फल होवे । हिंसा, झूठ, चोरी, अदत्त, कुशील, आदि अठारह पाप स्थानों का सेवन किया हो, कराया हो तथा करते हुए का अनुमोदन किया हो तो मेरा पाप निष्फल होवे । इत्यादि आलोचना से पद्मावती का दुःख कुछ हलका हो गया । सूर्य वहीं अस्त हो गया। प्रात होने पर वह आगे चली । चलते चलते उसे एक तापसों का आश्रम मिला । आश्रम वासियों ने उसका भातिथ्य किया । स्वस्थ होने पर उसे एक तापस ने दंतपुर का मार्ग बता दिया । दंतपुर पहुँच कर उसने एक आर्या के पास दीक्षा ले ली। पहले तो रानी ने अपना गर्भ गुप्त रखा, परन्तु जब सब को मालूम होने लगा तो उसने प्रकट कर दिया। समय पूरा होने पर पद्मावती
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy