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________________ आगम के अनमोल रत्न करकण्डू ने न्यायाधीश की बात मानली । ब्राह्मण घर आया और उसने करकण्डू' की बात कही | सभी ब्राह्मण करकण्डू को मारने के लिये आये । करकण्डू वहाँ से भाग कर कलिंग देश की राजधानी कंचनपुर पहुँचा और थक कर एक वृक्ष के नीचे सोगया । संयोग वश वहाँ का राजा अपुत्र ही मर गया। मंत्रियों ने राजा को खोज में हाथी छोड़ा । यह हाथी जहाँ करकण्ड पड़ा सो रहा था, वहाँ भाया और उसको प्रदक्षिणा करके उसके सामने खड़ा हो गया । करकण्डू के शरीर पर राजा के लक्षण देख कर नागरिकों ने जयघोष किया और नन्दि वाद्य की घोषणा की । करकण्डू जंभाई लेता हुआ उठा । नागरिकों ने उसे हाथी पर बैठाया और राजमहल में ले गये । जब ब्राह्मणों के पास यह खबर पहुँची कि एक चाण्डाल के पुत्र को राजगद्दी दी जारही है तो उन्होंने इसका विरोध किया, परन्तु किसी की कुछ न चली। उसने अपने प्रताप से सबको वश में कर लिया और बाटधानक के चाण्डालों को शुद्ध करके ब्राह्मण बनाया ४९७ करकण्डू के राजा बनने का पता जब ब्राह्मण को लगा तो वह करकण्डू के पास आया और पूर्व शर्त के अनुसार एक गांव मांगने लगा । करकण्डू ने चंग के राजा दधिवाहन के नाम एक भाज्ञापत्र लिखा कि इस ब्राह्मण को एक गाव जागीरी में दिया जाय । ब्राह्मण पत्र लेकर दधिवाहन के पास पहुँचा और उसने कंचनपुर के राजा करकण्डू का आज्ञा पत्र दिखाया । उसे देख कर दधिवाहन बड़ा क्रुद्ध हुआ । उसने ब्राह्मण से कहा- " जाओ ! चाण्डाल पुत्र करकण्डू से कह दो कि मै तुम्हारा राज्य छीन कर ब्राह्मण को गांव दूँगा ।" राजा दधिवाहन ने सेना लेकर कंचनपुर पर चढ़ाई कर दी। करकण्ड ने उसका ढट कर मुकाबला करने की पूरी तैयारी करली। दोनों बाप बेटे रण क्षेत्र में भी डटे । -२ ३२
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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