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________________ आगम के अनमोल रत्न ४८७ उस समय आकाश में सहसा दिव्य प्रकाश हुआ। एक देवता मुनि के पास आया । उसने प्रथम मदनरेखा को वन्दन किया और उसके बाद मुनि को। यह देख मणिप्रभ ने मुनि से पूछा- भगवन् ! इस देव ने प्रथम मदनरेखा को क्यों प्रणाम किया ?" मुनि ने कहा"मणिप्रभ ! यह देव मदनरेखा का पति है । मदनरेखा के वारण ही यह देव बना है।" मुनि ने मदनरेखा का सारा परिचय दिया। मदनरेखा की जीवनी सुनकर मणिप्रभ बड़ा प्रभावित हुआ। उसने सती को प्रणाम किया और कहा--"देवी ! मुझे क्षमा करो। सचमुच तुम धन्य हो।" - उस समय मदनरेखा ने मुनि से पूछा- "मुनिवर ! मेरे पुत्र का क्या हुआ । " मुनि ने कहा-"देवी ! तुम्हारे पुत्र को मिथिला का राजा पद्मरथ ले गया है । वह उसे पुत्रवत् पाल रहा है ।" मुनि को वन्दन कर मणिप्रम घर जाने लगा तब मदनरेखा ने मणिप्रभ से कहा--"भाई ! अगर आप ठीक समझो तो मुझे मिथिला पहुँचा दो।" मणिप्रभ ने मदनरेखा को मिथिला पहुँचा दिया । मिथिला में पहुँचने के बाद मदनरेखा ने 'दृढवता' साध्वी के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। और धर्मध्यान में अपना समय बिताने लगी। इधर मणिरथ की मृत्यु के बाद चन्द्रयश न्याय नीति से राज्य का संचालन करने लगा। मिथिला के राजा पद्मरथ के घर जब से बालक आया तब से उसके पुण्य प्रभाव से पद्मरथ के शत्रु नम्र होकर उसको आकर नमने लगे । पद्मरथ ने यह सब प्रभाव बालक का समझ कर उस बालक का नाम 'नमि' ऐसा रख दिया। नमि बड़े बुद्धिमान थे । उन्होंने अल्पकाल में ही सब फलाएँ सीखली । वे बड़े विचारक एवं तत्वज्ञ बने । पद्मरथ ने सब प्रकार से नमि को योग्य मानकर उसे राज्य सौप दिया ओर स्वयं विद्वान् आचार्य के पास दीक्षित हो गये।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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