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________________ ૨૮૮ आगम के अनमोल रत्नmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm नमि बड़ी योग्यता से राज्य का संचालन करने लगे। मिथिलापति नमि और अवन्ती पति चन्द्रयश यद्यपि दोनों सगे भाई थे, किन्तु यह बात वे दोनों नहीं जानते थे । दोनों में राजकारण को लेकर वैमनस्य चल रहा था। घी का एक छींटा जैसे अग्नि को भड़का देता है वैसे ही इन दोनों राजाओं के वीच छोटे से कारण से ज्वाला मुखी फट उठता था । एक दिन ऐसा हुआ कि मिथिलापति नमि का हाथी उन्मत्त होकर भागता भागता अवन्ती की सीमा में पहुंच गया । अवन्ती के राजा ने उसे युति से पकड़ कर अपने पास रख लिया। मिथिलापति ने हाथी वापस सौंप देने के लिए दूत द्वारा संदेशा भेजा किन्तु विना युद्ध के हाथी को सौंप देने में अवंतिराज चन्द्रयश को अपमान महसूस हुआ । युद्ध के लिये इतना सा निमित्त काफी था। अवन्ती और मिथिला की सेना युद्ध के लिये आमने सामने खड़ी होगई । मेरी और शंख के नाद से रणभूमि गरज उठी । अवन्तीपति चन्द्रयश और मिथिलापति नमिराज भी सेना के आगे खड़े थे। युद्ध के आरंभ की अब मात्र घड़ियाँ ही बाकी थीं। इतने में एक साध्वी बड़ी तेजी के साथ चलती हुई आयी और दोनों राजाओं की सेना के बीच खड़ी होगई । रण भूमि के बीच साध्वी को देखकर सभी आश्चर्य चकित हो गये। रण भूमि के बीच साध्वी गरज कर बोली-'बेटा चन्द्रयश ? जरा नीचे आ और यह युद्ध किसके बीच हो रहा है इसे जानले । तू नमि से दो वर्ष बड़ा है इसलिये तुझसे मैं पहले आग्रह करती हूँ।" । “नमिराज ! तू भी जरा नीचे आ ।" साध्वी का आदेश पाकर नमिराज तथा चन्द्रयश दोनों हाथियों से नीचे उतर कर साध्वी के पास आकर खड़े हो गये। साध्वी ने वात्सल्य भरी दृष्टि से दोनों को निहारा । दोनों पुत्रों को सामने देख साध्वी बोली-"तुम दोनों सगे भाई हो। तुम्हारी माँ एक ही है। तुम दोनों की माता आज तुम्हारे सामने खड़ी है ।" मदनरेखा साध्वी ने अपना सारा इतिहास अथ से
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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