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________________ ४८६ आगम के अनमोल रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmma : से प्रहार कर दिया । कोई देख न ले इस भय से घबराकर वह वहाँ से भागा। भागते हुए उस का पैर एक विषधर सर्प पर पड़ा। सर्प ने उसे डस लिया और वह तत्काल भर गया । भरकर वह' नरक में पैदा हुआ । इधर मदनरेखा अपने पति को घायल देख कर और मृत्यु समीप जानकर उन्हें धर्म का शरण देने लगी । चार प्रकार का आहार और अठारह प्रकार के पाप स्थान का त्याग करवाया । इस प्रकार आहार तथा अटारह पापों का त्याग कर समाधिपूर्वक युगबाहु ने देह छोड़ा और मर कर वह देवलोक में देव बना ।। मदनरेखा ने सोचा-"यदि मैं वापस अपने महल चली जाऊँगी तो मणिरथ जबरन मुझे अपनी रानी बनायेगा । यह सोचकर वह वन की ओर चल पड़ी । चलते चलते एक अटवी में पहुंची। उसने वहीं पुत्र को जन्म दिया । अपने पति के नाम की मुद्रा नवजात शिशु के हाथ में पहनाकर उसे एक वृक्ष की शाखा में झोली पर लटको दिया और वह शरीर शुद्धि के लिये समीप के तालाब पर चली गई । वहाँ एक उन्मत्त हाथी ने उसे संढ़ में पकड़ कर आकाश में उछाल दिया। उसी समय मणिप्रभ नाम का विद्याधर आकाश में जा रहा था। उसने उसे झेल दिया और विमान में बैठा लिया । मदनरेखा ने विद्याधर से पूछा--"आप कौन हैं ? और विधर जा रहे हैं ?" विद्याधर ने कहा"मेरा नाम मणिप्रभ है। मै अपने पिता के दर्शन के लिए जा रहा था किन्तु मार्ग में ही तुम जैपी सुन्दरी मिल गई अब वापस नगर जाऊँगा ।" मदनरेखा ने कहा-'मणिप्रभ ! मैं भी मुनि दर्शन करना चाहती हूँ। आपै मुझे वहाँ ले चले ।" मदनरेखा की इच्छा के वश हो मणिप्रभ मुनि दर्शन के लिये चला । मुनि के पास जाकर उन दोनों ने वन्दना की । मुनि ने मदनरेखा के प्रति मणिप्रभ के भाव को जान लिया । मुनि ने मणिप्रभं को उपदेश देना प्रारम्भ किया । "
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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