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________________ आगम के अनमोल रत्न कृष्ण वासुदेव ने बड़े समारोह के साथ गजसुकुमाल का राज्याभिषेक किया । राजा बनने के बाद माता पिता ने गजसुकुमाल से पूछा-"पुत्र ! अब तुम क्या चाहते हो!" गजसुकुमाल ने उत्तर दिशा "मैं दीक्षा लेना चाहता हूँ।" तब गजसुकुमाल की आज्ञानुसार दीक्षा की सभी सामग्री मंगाई गई। गजसुकुमाल बड़े ठाठ के साथ भगवान अरिष्टनेमि के समीप पहुँच गये, और दीक्षा स्वीकार कर ली। ये अनगार बन गये । एक तरुण तपस्वी, जिसने भाज ही त्याग मार्ग पर अपना फौलादी कदम रखा था, वह भाज ही जीवन की चरमकोटि को छू लेने के प्रयत्न में लग गया। प्रवज्या के दिन ही वह तरुण तपस्वी भगवान अरिष्टनेमि के पास आया और विधिपूर्वक वन्दन कर बोला-"भगवन् ! आपकी भाज्ञा हो तो मैं आज ही महाकाल स्मशान में जाकर एक रात्रि की भिक्षु प्रतिमा स्वीकार करूँ अर्थात् स्मशान में सम्पूर्ण रात्रि ध्यानस्थ होकर खड़ा रहूँ।" भगवान ज्ञानी थे । वे इस तरुण तपस्वी की त्याग भावना व उत्कट वैराग्य से परिचित थे । उन्होंने मुनि गजसुकुमाल को महाकाल स्मशान में ध्यान करने की आज्ञा दे दी । भगवान की आज्ञा पाकर गजसुकुमाल मुनि भगवान को वन्दन कर सहस्राम्र उद्यान से निकले और महाकाल स्मशान में पहुँच गये । वहां उन्होंने कायोत्सर्ग के लिये निर्दोष भूमि का निरीक्षण किया तथा लघुनीत, बड़ीनीत के लिए योग्य भूमि की प्रतिलेखना की। उसके बाद शरीर को कुछ झुकाकर चार अंगुल के अंतर से दोनों पैरों को सिकोड़ कर एक पदार्थ पर दृष्टि रखते हुए एक रात्रि की महाप्रतिमा स्वीकार कर ध्यानस्थ खड़े होगये । सूर्य धीरे धीरे अस्ताचल की ओर बढ़ रहा था । संध्या की गुलाबी प्रभा चारों दिशा में व्याप्त हो रही थी । अंधकार की काली
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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