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________________ आगम के अनमोल रत्न को लेकर राजसेवक सोमिल ब्राह्मण के पास गये और उससे कन्या की याचना की। राजपुरुषों की बात सुनकर सोमिल ब्राह्मण अत्यन्त प्रसन्न हुमा और अपनी कन्या सोम को ले जाने की स्वीकृति दे दी। उसके वाद राजपुरुषों ने सोमा कन्या को लेकर कन्याओं के अतःपुर में रख दिया और कृष्णवासुदेव को इस बात की सूचना दे दी। ____भगवान के दर्शन, चन्दन और उपदेश सुनकर कृष्ण लौटे। साथ ही गजसुकुमाल भी लौटा, किन्तु त्याग और वैराग्य की ज्योति के साथ । भगवान की वाणी से उसका हृदय वैराग्य रस में ओत प्रोत हो गया। उसे संसार की हर वस्तु नीरस लगने लगी। संसार के भोग विलास उसे कांटे की तरह चुभने लगे। घर आते हो गज सुकुमाल ने अपने माता पिता के सामने प्रव्रज्या का प्रस्ताव रख दिया । माता पिता ने उसकी दोक्षा की बात सुनकर उससे कहा-"वत्स ! तुम हमें वहुत इष्ट एवं प्रिय हो। हम तुम्हारा एक क्षण भी वियोग नहीं सह सकते । अभी तुम्हारा विवाह भी नहीं हुआ है इसलिए पहले तुम विवाह करो । कुल की वृद्धि करके अर्थात् तुम्हारे पुत्रादि हो जाने पर तथा हमारा स्वर्गवास होने पर फिर तुम दीक्षा ग्रहण करना।" जब गज सुकुमाल के वैराग्य का समाचार कृष्ण वासुदेव ने सुना तो वे तुरंत दौड़कर गजसुकुमाल के पास आये और उसे अपनी गोद में विठला कर अत्यन्त स्नेह पूर्ण वाणी से बोले-"सहोदर ! अभी तुम दीक्षा मत लो। तुम्हारी युवावस्था है । सोमा के साथ तुम्हारे विवाह की तैयारियों हो रही है, ऐसी अवस्था में घर छोड़ना उचित नहीं है। मैं बड़े ठाठवाट के साथ तुम्हारा राज्याभिषेक करके तुम्हें इस द्वारिका का राजा बनाना चाहता हूँ । देवकी देवी और वसुदेव का वात्सल्य, कृष्ण का स्नेहभाव और विशाल राज्य का प्रलोभन और सोमा का सौंदर्य, यह सब कुछ गजमुकुमाल को त्याग मार्ग से विचलित नहीं कर सका किन्तु भाई के स्नेहवश एक दिन के लिए द्वारवती का राजा वनना उसने स्वीकार कर लिया । . .
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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