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________________ आगम के अनमोल रत्न देवकी ने कहा-"पुत्र ! मैने आकृति वय और कान्ति मे एक जैसे सात-सात पुत्रों को जन्म दिया परन्तु मैने एक भी पुत्र की वालक्रीड़ा के आनन्द का अनुभव नहीं किया। हे पुन ! तुम भी मेरे पास चरणवन्दन करने के लिये छः-छः महीने में आते हो । अत. वह माता धन्य है जो अपने वालक को वालक्रीड़ा के आनन्द का अनुभव करती है। मै अपन्या हूँ।" मां की खिन्नता का कारण जान. कर कृष्ण ने कहा 'मा तुम चिन्ता मत करो। तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी। मेरा भाठवाँ भाई होगा। उसको तुम लाड़ प्यार और दुलार करना ।" मां को इस प्रकार के मधुर वचनों से आश्वासित कर कृष्ण वासुदेव पौषधशाला में आये और तीन दिन का तेला कर हरिणैगमेषी देव, की आराधना करने लगे। कृष्ण की उपासना से देव प्रसन्न हुआ और बोला-"कृष्ण । आपने मुझे क्यों याद किया है ? भाप क्या चाहते हैं ?" कृष्ण ने कहा--"देव मुझे छोटा भाई चाहिये ।" देवने कहा-. कृष्ण ? आपकी अभिलाषा अवश्य पूरी होगी। एक देव देवलोक से च्युत होकर देवकी के उदर में उत्पन्न होगा। जन्म लेगा और तरुण अवस्था में जब आयगा तब वह भगवान अरिष्टनेमि के समीप दीक्षा लेगा । देव इतना कहकर स्वस्थान चला गया । उसके बाद वे अपनी मां देवकी के पास आये और बोले-मां ! तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी ।" एक रात्रि में देवकी ने सिंह का स्वप्न देखा। रानी अपनी शैया से तुरंत उठ बैठी और अपने पति वसुदेव के शयन-कक्ष में जाकर सविनय बोली___ "प्राणनाथ मैने अभी-अभी सिंह का स्वप्न देखा है। यह शुभ है या अशुभ । इसका फल क्या है ?"
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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