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________________ ૪૨૮ आगम के अनमोल रत्न ~ ~ छहों अनगार थे। उन अनगारों को देखकर पुत्रप्रेम के कारण उसके स्तनों में से दूध झरने लगा । हर्ष के कारण उसकी आँखों में आंसू भर आये एवं अत्यन्त हर्ष के कारण शरीर फूलने से उसकी कंचुकी की कसे टूट गई और भुजाओं के आभूषण तथा हाथ की चूड़ियाँ तग हो गई । वर्षा की धारा पड़ने से जिस प्रकार कदम्ब पुष्प एक साथ सबके सब विकसित हो जाते हैं उसी प्रकार शरीर के सभी रोम पुलकित हो गये। उन छहों अनगारों को अनिमेष दृष्टि से वहत देर तक निरखती रही। बाद में उन्हें वन्दना नमस्कार करके भगवान अरिष्टनेमि के पास आई और भगवान को तीन बार नमस्कार कर वह अपने धार्मिक रथ पर चढ़ गई । घर आकर अपने भवन में सुकोमल शय्या पर बैठ गई और इस प्रकार सोचने लगी-"मैने आकृति वय और कान्ति में एक जैसे सात-सात पुत्रों को जन्म दिया किन्तु उन पुत्रों में से किसी भी पुत्र की बाल क्रीड़ा के आनन्द का अनुभव नहीं किया । यह कृष्ण भी मेरे पास चरण वन्दन के लिये छ-छ महीने में आता है । वे माताएँ कितनी भाग्यशालिनी हैं जिनकी गोद में बच्चा खेलता है। अपनी मनोहर तोतली बोली से मां को आकर्षित करता है । फिर वह मुग्ध बालक अपने मां के द्वारा कमल के समान कोमल हाथों से उठाकर गोदी में बिठाये जाने पर दूध पीते हुए अपनी मां से तुतले शब्दों में बाते करता हैं और मीठी बोली बोलता है।" "मैं अघन्य हूँ। अपुण्य हूँ । इसलिये मैं अपनी सन्तान की बालक्रीडा के आनन्द का अनुभव नहीं कर सकी ।" इस प्रकार खिन्न हृदया देवकी चिन्ता में डूब गई । इतने में कृष्ण वासुदेव अपनी माता देवकी को वन्दन करने के लिए वहाँ उपस्थित हुए। उन्होंने अपनी माता को उदास एवं चिन्तित देखा । उनके चरणों में नमस्कार कर पूछा--- माताजी ! जब मैं तुम्हारे वंदन करने के लिये आता था तब तुम मुझे देखकर अत्यन्त प्रसन्न होती थीं परन्तु आज तुम्हारा मुख अत्यन्त उदास और चिन्तामय दिखाई देता है । क्या मै तुम्हारी चिन्ता का कारण जान सकता हूँ?"
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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