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________________ आगम के अनमोल रत्न ৪২৩ AN उत्तर में देवकी ने कहा-"हाँ, भगवन् ! आपने जो फरमाया वह सब सत्य है, अब कृपाकर उसका समाधान फरमायें ।" भगवान ने कहा-'हे देवानुप्रिये । इसका समाधान यह हैभदिलपुर नाम का नगर है । वहाँ धन धान्य से समृद्ध नाग नाम का गाथापति रहता है। उसकी पत्नी का नाम सुलसा है। वह सुलसा जब बाल्यावस्था में थी उस समय किसी भविष्यवक्ता नैमित्तिक ने उसे इस प्रकार कहा था कि तुम मृत वन्ध्या होगी । उसके बाद वह सुलसा अपने बाल्यकाल से ही हरिणैगमेषी देवता की भक्त वन गई। उसने हरिणेगमेषी देव की प्रतिमा बनाई। फिर प्रतिदिन स्नान आदि करके, भीगी साड़ी पहने हुए ही वह उस प्रतिमा के सामने फूलों का ढेर करती थी फिर अपने दोनों घुटनों को पृथ्वी पर टेक कर उसे नमस्कार करती थी और बाद में भाहार आदि क्रिया करती थी। __सुलसा गाथापत्नी की इस सेवा अर्चना से हरिणैगमेषीदेव प्रसन्न हुआ । उसने सुलसा गाथापत्नी को अनुकम्पा के लिए तुम दोनों को एक साथ ऋतुमती किया । जिसके कारण तुम दोनों साथ ही गर्भ धारण करने लगी । एक साथ गर्भ का पालन करने लगी और एक ही साथ वालवों को जन्म देने लगीं । परन्तु सुलसा गाथापत्नी के वालक मरे हुए जन्मते थे । हरिणैगमेषी देव मुलसा की अनुकम्ण के लिये उन भरे हुए वालकों को अपने हाथों में उठाकर तुम्हारे पास ले आता । उसी समय तू भी पुत्रों को जन्म देती । तुम्हारे इन पुत्रों को उठाकर हरणेगमेषी देव सुलसा गाथापत्नी के पास रख देता था। इसलिये हे देवकी ! अतिमुक्तक अनगार के वचन सत्य हैं । ये सभी तुम्हारे पुत्र हैं सुलसा गाथापत्नी के नहीं। इन सवको तुमने ही जन्म दिया है, सुलसा गाथापत्नी ने नहीं।" देवकी महारानी भगवान के मुख से अपनी शंका का समाधान सुनकर अत्यन्त प्रसन्न हुई। भगवान को वन्दन कर वह वहां गई जहाँ
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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