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________________ आगम के अनमोल रत्न वह विनय दो प्रकार का है - एक अगार विनय अर्थात् गृहस्थ का आचार दूसरा अनगार विनय अर्थात् मुनि का आचार। इनमें जो अगार विनय है वह पांच अनुव्रत, सात शिक्षात्रत और ग्यारह उपासक प्रतिमा रूप है । जो अनगार विनय है - वह पाच महाव्रत रूप यथा-समस्त प्राणातिपाल से विचरति, समस्त मृषावाद से विरति, समस्त अदत्तादान से विरति, समस्त मैथुन से विरति, समस्त परिग्रह से विरति, तथा समस्त रात्रिभोजन से विरति, समस्त मिथ्यादर्शन शल्य से विरति, दश प्रकार का प्रत्याख्यान और वारह भिक्षु प्रतिमाएँ। इस प्रकार के विनय मूलधर्म का आचरण करने से यह जैव क्रमशः आठ कर्मप्रकृतियों का क्षय कर लोक के अग्रभाग में मोक्ष में प्रतिष्टित होता है । वह पुनः जन्म मरण नहीं करता । सुदर्शन से पूछा - सुदर्शन ! तुम्हारे सुदर्शन ने उत्तर दिया- भगवन् ! हमारा आचरण से जीव स्वर्ग थावच्चापुत्र अनगार ने धर्म का मूल क्या कहा गया है ? धर्म शौचमूलक कहा गया है । इस धर्म के में जाते हैं । थावच्चा पुत्र अनगार ने कहा- सुदर्शन | रुधिर से लिप्त वस्त्र को रुधिर से धोने पर क्या उसकी शुद्धि हो सकती है ? इस पर सुदर्शन ने कहा - ' नहीं" तब थावच्चा अनगार ने कहा - इसी प्रकार हिंसा से, मिथ्यादर्शन शल्य से, पाप स्थानों की शुद्धि नहीं हो सकती । जैसे रुधिर से सना हुआ वस्त्र क्षार से शुद्ध होता है वैसे ही हिंसा; असत्य; चोरी; मैथुन एव परिग्रहादि से विरमन होने से ही पयस्थानों की शुद्धि होती है आत्मा निर्मल और पावन बनती है । थावच्चापुत्र अनगार का यह कथन उस पर असर कर गया । उसने शौच मूल धर्म का परित्याग कर विनय मूल धर्म को स्वीकार किया । वह श्रमणों की आहार पानी आदि से खूब सेवा करने लगा । इधर शुक परिव्राजक को समाचार मिला कि सुदर्शन सेठ ने शौच धर्म का परित्याग कर विनय धर्म स्वीकार कर लिया है तो वह
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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