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________________ ४१२ आगम के अनमोल रत्न उस समय शुक नाम का एक परिव्राजक था। वह ऋग्वेद आदि चार वेदों तथा पहितंत्र आदि सांख्य शास्त्रों में कुशल था। पांच यमों और पांच नियमों से युक्त दश प्रकार के शौच मूलक परिव्राजक धर्म का, दान धर्म का, शौच धर्म का और तीर्थ स्नान का उपदेश देता था और उसका प्रचार करता था। वह गेरुमा वस्त्र पहनता था। अपने हाथ में त्रिदंड, कुण्डिका-कमण्डल, मयूरपुच्छ का छत्र, छन्नालिक (काष्ठ का एक उपकरण) अंकुश, पवित्री और केसरी ये सात उपकरण रखता था । एक हजार परिव्राजकों के साथ वह सौगन्धिका नगरी में आया और पग्विाजकों के मठ में ठहरा । शुक परिबागक के आने के समाचार सुन नगरी की जर्नोता धमपदेश सुनने उसके पास गई। सुदर्शन सेठ भी गया । शुक परिव्राजक ने शौच धर्म का उपदेश देते हुए कहा-हमारे धर्म का मूल शौच है। शौच दो प्रकार का है। एक द्रव्य शौच और दूसरा भाव शौच । द्रव्य शौच जल और मिट्टी से होता है और भाव शौच दर्भ और मंत्र से होता है। जो हमारे शौच धर्म का पालन करता है वह अवश्य स्वर्गे में जाता है। शुक परिवाजक के उपदेश से सुदर्शन सेठ बड़ा प्रभावित हुआ और उसने परिनामक से शौच धर्म को ग्रहण किया। वह परिव्राजकों की भोजन पान आदि से खूब सेवा करने लगा। कुछ दिन सोगन्धिका में रहकर शुक परिव्राजक ने वहाँ रो विहार कर दिया। ___थावच्चा अनगार प्रामानुग्राम विचरण करते हुए अपने हजार शिष्यों के साथ सौगन्धिका नगरी में पधारे और नीलाशोक उद्यान में ठहरे। थावच्चापुत्र अनगार का आगमन जानकर परिषद् निकली। सुदर्शन सेठ भी निकला । उसने थावच्चापुत्र अनगार को विनयपूर्वक वन्दन नमस्कार कर पूछा-भन्ते ! आपके धर्म का मूल क्या है ? थावच्चापुत्र अनगार ने उत्तर में कहा-सुदर्शन ! हमारे धर्म का मूल विनय है।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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