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________________ ग्यारह गणधर यं पश्यन्ति धीरा यतयः संयतात्मनः' इत्यादि उपनिषद् वाक्यों से देहातिरिक्त आत्मा का प्रतिपादन होता था। इस द्विविध वेदवाणी से वायुभूति इस विषय में शंकाशील बने हुए थे। ___ भगवान महावीर ने वायुभूति को अपने सन्मुख बैठा हुआ देख कर उसकी शंका का समाधान कर दिया और शरीरातिरिक्त आत्मतत्त्व का प्रतिपादन किया। भगवान महावीर से अपनी शंकाओं का समाधान पाकर वायुभूति ने अपने पांच सौ छात्रों के साथ भगवान के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। वायुभूति ने बयालीस वर्ष की अवस्था में गृहवास छोड़कर श्रमणधर्म की दीक्षा ली। दस वर्ष छद्मस्थावस्था में रहने के उपरान्त उन्हें केवलज्ञान प्राप्त हुआ और अठारह वर्ष केवली अवस्था में विचरे। ___ भगवान महावीर के निर्वाण के दो वर्ष पहले वायुभूति भी ७. वर्ष की अवस्था में मासिक अनशन के अन्त में गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए। ४. आर्य व्यक्त भगवान महावीर के चौथे गणधर का नाम आर्य व्यक्त था। ये कोल्लाग सन्निवेश के निवासी भारद्वाज गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी माता वारुणी और पिता धनमित्र थे । आर्य व्यक्त भी पांच सौ छात्रों के अध्यापक थे और सोमिल ब्राह्मण के आमन्त्रण से यज्ञोत्सव पर पावामध्यभा में आये थे। आर्य व्यक्त की विचार सरणी "स्वप्नोपमं वै सकल मित्येष ब्रह्मविधि रञ्जसा विज्ञेयः" इत्यादि श्रुतिवाक्यों से ब्रह्माद की तरफ झुकी हुई थी। पर साथ ही "द्यावापृथिवी' तथा 'पृरिवी देवता आपो देवता' इत्यादि वैदिक वचनों को देखकर वे दृश्य जगत् को भी मिथ्या नहीं मान सकते थे। इस प्रकार व्यक्त संशयाकुल थे तथापि अपना संदेह किसी को प्रकट नहीं करते थे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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