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________________ ३७० आगम के अनमोल रत्न सिद्धान्त स्वीकार किया । भगवान महावीर का उपदेश सुनकर अग्निभूति ने प्रतिबोध पाया और अपने छात्र-मण्डल के साथ भगवान महावीर के समीप दीक्षा ग्रहण की। अग्निभूति ने छियालीस वर्ष की अवस्था में श्रामण्य धारण किया। बारह वर्ष तक छमस्थावस्था में तप कर केवलज्ञान प्राप्त किया और , सोलह वर्ष पर्यन्त केवली अवस्था में विचर कर श्रमण भगवान की जीवित अवस्था में ही उनके निर्वाण के करीब दो वर्ष पहले, राजगृह के गुणशील चैत्य में मासिक अनशन के अन्त में ७५ वर्ष की अवस्था में निर्वाण प्राप्त किया। ३. वायुभूति वायुभूति इन्द्रभूति गणधर के लघुभ्राता थे । ये भी सोमिल ब्राह्मण के यज्ञोत्सव पर अपने पांच सौ छात्रों के साथ पावामध्यमा , में आए हुए थे। इन्द्रभूति और अग्निभृति को दीक्षित हुआ जानकर उनके छोटे भाई वायुभूति ने सोचा-"भगवान वास्तव में सर्वज्ञ हैं। तभी तो मेरे दोनों बड़े भाई उनके पास दीक्षित हो गए हैं। उनके सन्मुख जाकर वन्दना करने से मेरे समस्त पाप धुल जायेंगे और उनकी उपासना करके मैं अपनी समस्त शकाओं का समाधान करा लूँगा।" ऐसा विचार करके वायुभूति अपने पांच सौ छात्रों के साथ भगवान महावीर के समीप पहुँचे और भगवान को भक्तिपूर्वक वन्दना कर उनके पास बैठ गये।। वायुभूति के दार्शनिक विचारों का झुकाव 'तज्जीवतच्छरीरवादी' नास्तिकों के मत की ओर था। 'विज्ञानघन०' इत्यादि पूर्वोक्त श्रुतिवाक्य को वे अपने नास्तिक मत के विचारों का समर्थक मानते थे, परन्तु दूसरी भोर "सत्येन लभ्यस्तपसा ह्येष ब्रह्मचर्येण नित्यं ज्योतिर्मयो हि शुद्धो
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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