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________________ ३७२ आगम के अनमोल रत्न श्रमण भगवान महावीर की सर्वज्ञता की प्रशंसा सुनकर व्यक्त भी भगवान के समवशरण में गये जहाँ भगवान ने उनकी गुप्त शंकाओं को प्रकट किया और वेद वाक्यों के समन्वय पूर्वक द्वैत की सिद्धि कर उनका समाधान किया। अन्त में भगवान ने निर्ग्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया और आर्य व्यक्त अपने पांच सौ छात्रों के साथ भगवान महावीर के शिष्य बन गये। आर्य व्यक्त ने पचास वर्ष की अवस्था में श्रमण धर्म स्वीकार किया। बारह वर्ष तक तपस्या ध्यान आदि करके केवलज्ञान प्राप्त किया। ये अठारह वर्ष तक केवली अवस्था में रहकर भगवान के जीवन काल के अन्तिम वर्ष में अस्सी वर्ण की अवस्था में मासिक अनशन, के साथ गुणशील चैत्य में निर्वाण को प्राप्त हुए। ५. आर्य सुधर्मा भगवान महावीर के पांचवें गणधर का नाम आर्य सुधर्मा था । ये कोल्लाग संनिवेश के निवासी अग्निवेश्यायन गोत्रीय ब्राह्मण थे । मापका जन्म वि. सं. के ५५१ वर्ष पूर्व हुआ था। आपकी माता का नाम महिला और पिता का नाम धम्मिल था। आप अपने युग के समर्थ विद्वान् थे। आपके पास ५०० छात्र अध्ययन करते थे। आप भी गौतम गोत्रीय इन्द्रभूति के साथ मध्यमपावा में सोमिल ब्राह्मण के यहाँ यज्ञ में भाग लेने गये थे। "पुरुषो वै पुरुषत्वमश्नुते पशवः पशुत्वम्' इत्यादि वैदिक वचनों में विश्वास रखते हुए आप जन्मान्तर सादृश्यवाद के सिद्धान्त को मानते थे। पर इसके विपरीत "गालो वैएषः जायते यः स पुरीषो दह्यते" इत्यादि श्रौत वाक्यों से वे जन्मान्तर के वैसादृश्य का भी 'निषेध नहीं कर सकते थे। इन द्विविध वचनों से विद्वान् सुधर्मा इस विषय. में संशयग्रस्त थे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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