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________________ ग्यारह गणधर ३६१ पर्याय ही विज्ञानधन (विविध पर्यायों के पिण्ड) है जो भूतों से उत्पन्न होता है । यहाँ 'भूत' शब्द का अर्थ पृथिव्यादि पांच भूत नहीं है । यहाँ इसका अर्थ है 'प्रमेय' अर्थात् पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, तथा आकाश हो नहीं परन्तु जड चेतन समरत ज्ञेय (जाननेयोग्य) पदार्थ । "सव ज्ञेय पदार्थ आत्मा में अपने स्वरूप में भासमान होते हैं घट घट रूप में भासता है पट पट रूप में । ये भिन्न भिन्न प्रतिभास ही ज्ञान पर्याय हैं । ज्ञान और ज्ञानी में क्यचित् अभेद होने के कारण भूतों से अर्थात् भिन्न भिन्न ज्ञेयों से विज्ञानधन अर्थात् ज्ञान पर्यायों का उत्पन्न होना और उत्तर काल में उन पर्यायो का तिरोहित (व्यवहित) होना कहा है।" "न प्रेत्य संज्ञास्ति' का अर्थ परलोक की संज्ञा नहीं' ऐसा नहीं है । वास्तव में इसका अर्थ 'पूर्व पर्याय का उपयोग नहीं' ऐसा है। जब पुरुषों में नये नये ज्ञान पर्याय उत्पन्न होते हैं तव उसके पूर्व कालीन उपयोग व्यवहित हो जाने से उस समय स्मृति पट पर स्फुरित नहीं होते इसी अर्थे, को लक्ष्य करके 'न प्रेत्य सज्ञास्ति' यह वचन कहा गया है। भगवान महावीर के मुख से वेद वाक्य का समन्वय सुनते ही इन्द्रभूति के मन का अन्धकार विच्छिन्न हो गया। वे दोनों हाथ जोड़ कर बोले-"भगवन् ! आपका कथन यथार्थ है। प्रभो । मै आपका प्रवचन सुनना चाहता हूँ।" ___ गौतम की प्रार्थना पर भगवान महावीर ने निग्रन्थ प्रवचन का उपदेश दिया । उपदेश सुनकर वे संसार से विरक्त होकर निर्ग्रन्थ धर्म में प्रवजित हुए। उस समय वे पचास वर्ष के थे । गौतम के ५०० छात्र भी जो उनके साथ ही आये थे, महावीर के पास प्रव्रजित हुए और वे सभी इन्द्रभूति के शिष्य रहे । इन्द्रभूति भगवान महावीर के प्रथम शिष्य और प्रथम गणधर थे। उन्होंने विविध वषय के हिजारों प्रश्न भगवान से किये थे जो आज
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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