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________________ ३१२ आगम के अनमोल रत्न wwwwwwww आगमों में विद्यमान हैं। आपका भगवान महावीर के प्रति बड़ा स्नेह भाव था । भगवान महावीर से एक क्षण भी अलग रहना उन्हें पसन्द न था। भगवान महावीर और गौतम की आत्माओं का मिलन इस जन्म से ही नहीं अनेक पूर्वजन्मों से चला आ रहा था। यही कारण था कि गौतम का महावीर के प्रति अनन्य अनुराग था । इसी अनुराग के कारण गौतम भगवान महावीर के रहते केवलज्ञान से वंचित रहे । महावीर के संघ में हजारों राजकुमार, सेठ, सेनापति, परिव्राजक, तथा अन्य महर्द्धिक लोग दीक्षित होते थे। गौतम उनके पूर्वजन्म पूछते और ये कब और कैसे निर्वाण को प्राप्त करेंगे, यह भी पूछते महावीर उन सव का समाधान करते थे। ऐसे हजारों प्रसंग आगमों में विद्यमान हैं। उन्होंने पार्श्वनाथ की परम्परा के श्रुत स्थविर केशी के साथ शास्त्रार्थ कर उन्हें महावीर के संघ में सम्मलित कर लिया था । पार्श्व के चातुर्याम धर्म को महावीर के पंच महाव्रत धर्म के साथ समानता बताकर समन्वय बुद्धि का परिचय दिया था । खंदक के परिव्राजक होते हए भी गौतम ने उनका आगे जाकर स्वागत किया था। तोसली तापस के साथ की चर्चा, कर्म विपाक के फल को प्रत्यक्ष देखने के लिये मृगापुत्र की मां के पास जाना, आनन्द श्रावक से चर्चा कर पुनः उससे क्षमा याचना करना आदि अनेकों प्रसंग गौतम स्वामी के विषय में भागमों में वर्णित हैं जो गौतमस्वामी की महानता का परिचय देते हैं। गौतम की प्रतिबोध देने की शक्ति भी विलक्षण थी । पृष्ठचम्पा के गांगील नरेश को प्रतिबोध देने के लिये भगवान महावीर ने उन्हें भेजा था। अष्टापद पर्वत से उतरते हुए उन्होंने पन्द्रहसौ तीन तापसों को सहज ही में श्रमण धर्म में दीक्षित किया था ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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