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________________ ३५० आगम के अनमोल रत्न बड़े समारोह के साथ कृष्ण वासुदेव अपनी ओर से ही करेगे।" इस प्रकार की धर्म प्रभावना से श्रीकृष्ण ने तीर्थङ्कर नामकर्म का उपार्जन किया । कृष्ण वासुदेव की इस घोषणा से पद्मावती आदि कई कृष्ण को रानियों ने, यादवकुमारों ने एवं नगर निवासियों ने दीक्षा ग्रहण की और आत्मकल्याण किया । कृष्ण वासुदेव ने नगरी को विनाश से बचाने के लिये नगरी भर में यह घोषणा करा दी कि नगर की सब मदिरा कदंबवन की गुफा में फेक दी जाय । जरा कुमार भी अरिष्टनेमि की भविष्यवाणी सुनकर बहुत दुःखी हुआ और वह भाई के स्नेहवश अपना घर छोड़ कर वनवास के लिये चला गया । छः महीने गुफा में पड़ी पड़ी सुरा खूब पककर सुस्वादु बन गई। संयोगवश शंषकुमार का शिकारी घूमता फिरता वहां आया और उस सुन्दर स्वच्छ सुरा का पान कर अत्यन्त सन्तुष्ट हुआ। उसने जाकर शंबकुमार को खबर दी। शंवकुमार अन्य कुमारों को साथ में लेकर वहाँ पहुँचा और सब ने जी भरकर सुरा का पान किया। सुरा-पान कर सव कुमार मत्त होकर नाचने गाने लगे और परस्पर आलिंगन करते हुए खेलते कूदते एक पर्वत पर पहुँचे । संयोगवश वहाँ द्वैपायन ऋषि अपनी तपश्चर्या में बैठे हुए थे । द्वैपायन को देखकर यादव कुमार बड़े क्रुद्ध हुए और उन्माद में बकने लगे-"अरे यह तो वही द्वैपायन है जो हमारी स्वर्गतुल्य नगरी का विनाश करने वाला है" क्यों न इसका ही नाश, कर दिया जाय । 'न रहेगा बाँस और न बजेगी बांसुरी' । वे ऋषि के पास आये और उन्हें लात और घूसों से मार मारने लगे। ऋषि बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। ऋषि को मरा जानकर कुमार उसे वहीं छोड़कर द्वारका लौट आये। . यादवकुमारों के चले जाने पर द्वैपायन की मूर्छा दूर हुई। कुछ स्वस्थ होने के बाद द्वैपायन को कुमारों के इस दुष्कृत्य पर अत्यन्त
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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