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________________ वासुदेव और बलदेव ३४९ . भगवान अरिष्टनेनि के मुख से द्वारिका के विनाश का कारण जानकर कृष्गवासुदेव के हृदय में ऐसा विचार आया "जालि, मयालि आदि यादव धन्य हैं जो अपनी सम्पत्ति और स्वजनों का मोह छोड़ कर भगवान के पास प्रवजित हो गये हैं किन्तु मै मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों में फंसा हुआ हूँ। क्या मै भगवान के पास दीक्षा नहीं ले सकता हूँ।" भगवान कृष्ण के मन की बात जान गये और बोले-"कृष्ण ! यह असंभव है। कारण निदान के फलस्वरूप वासुदेव अपने भव में सम्पत्ति को छोड़कर दीक्षा नहीं लेते हैं, न ली और न लेगे।" पुन• कृष्ण ने पूछा-"भगवन् ! मेरी मृत्यु कैसी होगी ? भगवान-'हे कृष्ण ! जराकुमार के वाण से आहत होकर तुम्हारी मृत्यु होगी। भगवान के मुख से अपने आगामी भव की बात सुनकर कृष्ण उदास हो गये । कृष्ण की उदासी का कारण जानकर भगवान ने कहा "कृष्ण ! तुम्हें उदास होने की आवश्यकता नहीं । कारण तुम आगामी उत्सर्पिणी काल में इसी जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र के पुण्हजनपद के शतद्वार नगर में 'अमम' नामके बारहवें तीर्थकर वनोगे और सिद्धि प्राप्त करोगे। __ भगवान के मुख से अपना भविष्य सुनकर कृष्ण वासुदेव बड़े प्रसन्न हुए और हर्षावेश में सिंहनाद करने लगे। उसके बाद वे भगवान को वन्दन कर हस्तिरत्न पर बैठे और अपने महल चले आये। महल में आने के बाद अपने सेवको से यह घोषणा करवाई "सुरा, अग्नि और द्वैपायन ऋषि के कारण इस द्वारिका का विनाश होनेवाला है, अत. जो भगवान के पास दीक्षा लेना चाहते हैं उन्हे कृष्ण वासुदेव दीक्षा लेने की आज्ञा देते हैं । दीक्षा लेने वाले के पीछे जो कोई वाल, वृद्ध, स्त्री, रोगी होंगे उनका पालन पोषण कृष्णवासुदेव अपनी तरफ से करेंगे और दीक्षा लेने वालों का दोक्षा महोत्सव भी
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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