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________________ वासुदेव और बलदेव क्रोध आया। उसने अनशन कर यह निदान किया कि 'मेरी तपश्चर्या का कुछ फल है तो मै इस नगरी को लाकर नष्ट कर दूं।' कृष्ण को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने कुमारों के इस दुर्व्यवहार की बड़ी निंदा की। वे वलदेव को साथ में लेकर द्वैपायन के पास आये और कुमारों के दुर्व्यवहार की क्षमा मांगने लगे । द्वैपायन क्रोध से अन्धा होकर काँप रहा था । कृष्ण और वलदेव ने ऋषि को बहुत समझाया परन्तु उस पर कोई असर नहीं हुआ। उसने कहा"मैं द्वारिका को भस्म करने की प्रतिज्ञा कर चुका हूँ। फिर भी तुम्हारी नम्रता से मै प्रसन्न हूँ। तुम्हें, बलदेव एवं अन्य जो भगवान के पास दीक्षा लेंगे उन्हें भस्म नहीं करूँगा।" इतना कहकर ऋषि ने अपना प्राण छोड़ दिया । द्वैपायन मरकर अग्निकुमार देव बना। दोनों भाइयों को ऋषि के वचन सुनकर अत्यन्त खेद हुआ । घर लौटकर कृष्ण द्वारिका को बचाने का उपाय सोचने लगे। उस समय भगवान अरिष्टनेमि का मागमन हुभा। कृष्ण वासुदेव आदि भगवान के पास पहुंचे। उन्होंने द्वारिका को द्वैपायन के क्रोध से बचाने का उपाय पूछा"भगवन् ! द्वारिका नगरी को मैं कवतक भच्छी हालत में देख सकॅगा भगवान ने कहा-'बारह वर्ष तक द्वारिका नगरी को सुरक्षित रूप से तुम देख सकोगे। साथ ही जव तक आयंबिल आदि धर्मध्यान नगरी में होता रहेगा तव तक द्वारिका को द्वैपायन जला नहीं सकेगा।" भगवान के मुख से यह सुनकर कृष्ण आये और पुनः यह घोषणा करवाई-'द्वैपायन ऋषि द्वारिका को भस्म करने की प्रतिज्ञा कर चुका है अतएव भगवान की वाणी के अनुसार नगर-जन जप-तप पूर्वक समय वितायें और जिनको दीक्षा लेनी है वे दीक्षा ग्रहण कर आत्म कल्याण करें । यह घोषणा सुन कृष्ण के सारथी सिद्धार्थ ने, शम्ब प्रद्युम्न आदि कुमारों ने बहुत से लोगों के साथ दीक्षा ग्रहण की। भगवान ने वहाँ से विहार कर दिया ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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