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________________ ३३८ आगम के अनमोल रत्न के लिये वह बालक को उठाकर चल दिया । वह उसे मार डालना चाहता था किन्तु बालक की सुन्दर मुखाकृति देखकर उसे उस पर - दया आ गई | इससे उसे वैताढ्य पर्वत पर ले जाकर एक वन में सुनसान जगह पर रख दिया। इस प्रकार अपने वैर का बदला चुका हुआ मानकर वह वापिस अपने स्थान पर लौट आया । " वैताढ्य पर्वत पर रथनुपुर नाम का नगर था । वहाँ चन्द्रगति नाम का विद्याधर राजा राज्य करता था । वनक्रीड़ा करता हुआ वह उधर से निकला । उसकी दृष्टि उस सुन्दर बालक पर पड़ी । उसने बालक को उठा लिया और अपनी रानी को दे दिया ! राजा रानी ने उसे अपना पुत्र मानकर जन्मोत्सव किया और बालक का नाम 'भामण्डल' रखा । क्रमशः बढ़ता हुआ बालक युवावस्था को प्राप्त हुआ । अपने यहाँ पुत्र तथा पुत्री के उत्पन्न होने से राजा जनक खुश हो रहे थे इतने में पुत्र हरण की दुःखद घटना घटी। राजा की खुशी चिन्ता में बदल गई । राजा को बड़ा दुःख हुआ । पुत्री को ही पुत्र मानकर उन्होंने सन्तोष किया । जन्मोत्सव मनाकर पुत्री का नाम सीता रक्खा | योग्य वय होने पर स्त्री की चौसठ कलाओं में वह प्रवीण हो गई । अब राजा विदेह को उसके योग्य वर खोजने की चिंता हुई । * एक बार म्लेच्छराजा अन्तरंग बड़ी भारी सेना लेकर मिथिला पर चढ़ आया और नाना प्रकार के उपद्रव करने लगा । राजा की सेना म्लेच्छ राजा की सेना के सामने बार बार परास्त होती थी । यह देख राजा विदेह ने अपने मित्र राजा दशरथ के पास सहायता के लिये दूत भेजा । पिता की आज्ञा प्राप्त कर राम और लक्ष्मण सेना के साथ मिथिला आये और उन्होंने युद्ध करके म्लेच्छ राजा को परास्त कर दिया । राम और लक्ष्मण के अद्भुत पराक्रम को देखकर राजा जनक बड़े प्रसन्न हुए । उन्होंने उनका उचित अयोध्या की ओर बिदा किया । सत्कार करके उन्हें fi
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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