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________________ ~ www वासुदेव और बलदेव इधर जब भामण्डल को सीता के रूप सौंदर्य का नारदजी द्वारा पता लगा तो वह उस पर मुग्ध होगया। उसने दूत को जनक के पास मेजा और सीता की माग की। राजा जनक ने कहा-"मैने अपनी पुत्री सीता का विवाह स्वयंवर पद्धति से करने का निश्चय किया है। स्वयंवर के समय आपको भी आमंत्रण दिया जायगा । दूत ने भामण्डल को यह सन्देश सुनाया । भामण्डल सीता के स्वयंवर की प्रतीक्षा करने लगा। राजा जनक ने कुशल कारीगरों से एक सुन्दर मण्डा बनवाया और विविध देशों के राजा को स्वयंवर में आने का निमंत्रण भेजा। निश्चित तिथि पर अनेक राजा और राजकुमार उपस्थित हुए । राजा दशरप राम, लक्ष्मण आदि पुत्रों के साथ और विद्याधर चंद्रगति अपने पुत्र भामण्डल के साथ वहाँ भाया । सभी राजाओं के यथा योग्य भासन पर बैठ जाने के बाद राजा जनक ने कहा-जो देवाधिष्ठित वज्रावर्त नाम के धनुष पर वाण चढ़ाने में समर्थ होगा उसी के साथ सीता का पाणिग्रहण होगा ।" राजा की घोषणा के बाद सीता सुन्दर वस्त्रालंकारों से अलंकृत हो मण्डप में भाई । राजा जनक की प्रतिज्ञा सुनकर बैठे हुए राजकुमारों में से प्रत्येक वारी वारी से धनुष के पास आकर अपना वल आजमाने लगे किन्तु धनुष पर वाण चढ़ाना तो दूर रहा, उस धनुष को हिलाने में भी समर्थ नहीं हुए । इतने में दशरथनन्दन राम आसन से उठे । धनुष के पास आकर अनायास ही उन्होंने धनुष को उठाकर उस पर वाण चढ़ा दिया । यह देखकर राजा जनक की प्रसन्नता की सीमा न रही । . उनकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई। सीता ने परम हर्ष के साथ अपने भाग्य को सराहते हुए राम के गले में वरमाला डाल दी। राजा जनक ने विधिपूर्वक सीता का विवाह राम के साथ कर दिया। राजा दशरथ अपने पुत्रों और पुत्रवधू को साथ लेकर सानन्द अयोध्या लौट आये और सुख पूर्वक रहने लगे ।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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