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________________ वारह चक्रवर्ती ३१७ की । विष्णुकुमार ने नमुचि से कहा, "वर्षाकाल तक मुनियों को यहीं ठहरने दो बाद में जैसा कहोगे वैसा कर लिया जायगा ।" नमुचि ने उनके कथन की परवाह किए बिना उत्तर दिया "पाच दिन ठहरने की भी मेरी इजाजत नहीं है ।" विष्णुकुमार ने कहा "नगर से बाहर उद्यान में ठहर जाय !" नमुचि ने अधिक क्रोधित होते हुए कहा "नगर के उद्यान में ठहरने की वात तो दूर है, नीच पाखण्डियों को मेरे राज्य से बाहर निकल जाना चाहिये । यदि जीवित रहना चाहते हो तो शीघ्र मेरे राज्य को छोड़ दो।" इस पर विष्णुकुमार को क्रोध आ गया। उन्होंने कहा "अच्छा ! केवल तीन पैर स्थान दे दो। नमुचि ने कहा-"अगर इतने स्थान से बाहर किसी को देखा तो सिर काट डालँगा।" विष्णुकुमार ने वैक्रियलब्धि द्वारा अपने शरीर को बढ़ाना शुरू किया। उनके विराट्र रूप को देखकर सभी डर गये। नमुचि उनके पैरों में गिर कर क्षमा मागने लगा। सकट दूर होने पर शान्त चित्त होकर विष्णुकुमार ने प्रायश्चित ग्रहण किया और फिर तपस्या में लग गये। कुछ दिनों के बाद घातीकर्मों का नाश होजाने पर वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हो गये । महापद्म ने भी चक्रवर्ती पद को छोड़ कर दीक्षा ग्रहण करली । आठ कर्मों का क्षयकर के वे मोक्ष में गये । दसहजार वर्ष केवली पर्याय में रहकर विष्णुकुमार मुनि भी सिद्ध हुए। महापद्म चक्रवर्ती कुमार वय में ५०० वर्ष, मांडलिक वय में ५०० वर्ष, दिग्विजय में ३०० वर्ष, चक्रवर्ती पद में १८७००, व्रत में १०००० वर्ष, कुल ३०००० वर्ष की आयु भोंगी। इनकी ऊँचाई २० धनुष थी। १०. हरिषेण चक्रवर्ती भरतक्षेत्र में अनन्तनाथ प्रभु के तीर्थ में नरपुर नाम का नगर था। वहाँ नयनाभिराम नाम का राजा राज्य करता था। उसे वैराग्यः
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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