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________________ आगम के अनमोल रत्न उत्पन्न हो गया। उसने किसी महास्थविर के समीप दीक्षा ग्रहण की। अन्त में संथारापूर्वक देह का त्याग किया और वह मर कर सनत्कुमार देवलोक में महर्द्धिक देव बना ।। ___पांचाल देश में काम्पिल्य नाम का नगर था । वहाँ सिंह जैसा पराक्रमी इक्ष्वाकुवंश-तिलक 'महाहरि' नाम का विख्यात राजा राज्य करता था। उसे अत्यन्त सद्गुणी महिषी नाम की पट्टरानी थी। नयनाभिराम मुनि का जीव स्वर्ग से चवकर महारानी महिषी के उदर में उत्पन्न हुआ। चक्रवर्ती को सूचित करने वाले चौदह महास्वप्न महारानी ने देखे। समय आने पर महारानी महिषी ने सुवर्ण की कान्तिवाले एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । मातापिता ने बालक का नाम हरिषेण रखा । हरिषेण युवा हुए उस समय उनकी ऊंचाई १५ धनुष थी । महाहरि राजा ने हरिषेण कुमार को युवराज पद पर अभिषिक्त किया। पिता ने समय आने पर उन्हें अपना समस्त अधिकार दे दिया । कुछ समय के बाद हरिषेण राजा की आयुधशाला में चक्ररत्न उत्पन्न हुआ । राजा ने चक्ररत्न के उत्पन्न होने पर बड़ा उत्सव किया । क्रमशः पुरोहित, वर्द्धकि, गृहपति सेनापति आदि तेरह रत्न भी उत्पन्न हुए । महाराजा हरिषेण ने चौदहरत्नों की सहायता से भरत क्षेत्र के छ खण्डों पर विजय प्राप्त कर चक्रवर्तीपद प्राप्त किया । विजययात्रा से लौटने के बाद चक्रवर्ती ने दिग्विजय उत्सव बारह वर्ष तक किया। लम्बे समय तक चक्रवर्ती पद पर रहने के बाद मोक्ष के इच्छुक हरिषेण ने दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये। सवातीनसौ वर्ष कुमारावस्था में, सवातीनसौ वर्ष मांडलिक अवस्था में, १५० वर्ष दिग्विजय में, आठ हजार आठसौ पचासवर्ष चक्रवर्ती पद में एवं तीन सौ वर्ष दीक्षा अवस्था में रहे। भापकी कुल आयु १० हजार वर्ष की थी आप नमिनाथ के शासन काल में हुए थे।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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