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________________ २८०, आगम के अनमोल रत्न प्रथम पारणे का समय त्रिलोकीनाथ भगवान ऋषभदेव स्वामी को एक वर्ष के बाद भिक्षा प्राप्त हुई । शेष तीर्थङ्करों को दीक्षा के दूसरे ही दिन प्रथम भिक्षा का लाभ हुआ। प्रथम पारणे का आहार भगवान ऋषभदेव के पारणे में ईश्वरस था और शेष तीर्थकरों के पारणे में अमृतरस के समान स्वादिष्ट क्षीरान्न था। केवलज्ञानोत्पत्ति स्थान महावीर भगवान् को जम्बिक के बाहर (ऋजुवालिका नदी के तीर पर) केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । भगवान ऋषभदेव स्वामी और अरिष्टनेमिनाथ स्वामी को क्रमशः पुरिमताल नगर और रैवतक पर्वत पर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। शेष तीर्थङ्करों को अपने अपने जन्म स्थानों में केवलज्ञान हुआ। केवलज्ञान तप श्री पार्श्वनाथ स्वामी, ऋषभदेव स्वामी, मल्लिनाथ स्वामी और अरिष्टनेमिनाथ स्वामी को भष्टम भक्त-तीन उपवास के अन्त में तथा वासुपूज्य स्वामी को एक उपवास के तप में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । शेष तीर्थकरों को बेले के तप में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ । केवलज्ञान वेला ऋषभदेव स्वामी भादि तेईस तीर्थङ्करों को प्रथम प्रहर में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और चौवीसवें तीर्थङ्कर श्री महावीर भगवान् को अन्तिम प्रहर में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। तीर्थोत्पत्ति . ऋषभदेव स्वामी आदि तेईस तीर्थङ्करों के प्रथम समवसरण में - ही तीर्थ (प्रवचन) एवं चतुर्विध संघ उत्पन्न हुए। श्री महावीर भगचान के दूसरे समवसरण में तीर्थ एवं संघ की स्थापना हुई।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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