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________________ तीर्थङ्कर चरित्र .. ૨૨૩ डालकर उनपर दांतों का प्रहार करता था। जिससे वज्र जैसी भगवान की छाती में से अग्नि की चिनगारियाँ निकलती थी। लेकिन हाथी भी अपने प्रयत्न में सफल नहीं हुमा । . (१०) उसके बाद हथिनी ने भी भगवान पर वैसा ही उपद्रव किया। उनके शरीर को वींध डाला । अपने शरीर का जल-विष की तरह भगवान पर छिड़का । लेकिन वह भी भगवान को विचलित करने में सफल नहीं हुई। (११ ) उसके बाद उसने पिशाच का रूप ग्रहण किया और भयानक रूप में किलकारी भरते हुए हाथ में वीं लेकर भगवान की ओर झपटा और कष्ट पहुँचाने लगा। (१२) फिर उसने विकराल वाघ का रूप धारण किया । उसने वज्र जैसे दातों से व त्रिशूल की तरह नखों से भगवान के शरीर का विदारण किया । (१३) फिर उसने सिद्धार्थ और त्रिशला का रूप धारण किया और हृदय विदारक ढंग से विलाप करते हुए कहने लगा-“हे वर्द्धमान ! तुम वृद्धावस्था में हमे छोड़कर कहां चले गये। लेकिन भगवान भपने ध्यान में स्थित रहे। (१४) उसके बाद उसने भगवान के दोनों पैरों के बीच अग्नि जलाकर उन पर भोजन पकाया । (१५) उसने फिर चाण्डाल का रूप धारण किया और भगवान के शरीर पर विविध पक्षियों के पिंजरे लटका दिये, जो भगवान के शरीर पर चोंच और नख के प्रहार करने लगे। ', ' (१६) फिर उसने भयंकर आन्धी चलाई। वृक्षों के मूल उखाड़ताहुआ और मकानों की छतों को उड़ाताहुआ वायु गगनभेदी निनाद के साथ वहने लगा । भगवान महावीर कई बार ऊपर उड़ गये भौर फिर नीचे गिरे, लेकिन फिर भी वे ध्यान से विचलित नहीं हुए।
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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