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________________ २२२ आगम के अनमोल रत्न • / वे बीस उपसर्ग ये हैं। (१)पहले उसने प्रलयकारी धूल की भीषण वृष्टि की । भगवान के नाक, भाँख, कान उस धूल से भर गये लेकिन अपने ध्यान से वे जरा भी विचलित नहीं हुए। (२) धूल की वर्षा करने का उपद्रव शान्त होते ही उसने वज जैसी तीक्ष्ण मुँहवाली चीटियाँ उत्पन्न की । चीटियों ने महावीर के सारे शरीर को खोखला बना दिया । (३ ) फिर उसने मच्छर के झुण्ड के झुण्ड भगवान पर छोड़े जो उनके शरीर को छेद कर खून पीने लगे। उस समय भगवान के शरीर में से बहते हुए दूध जैसे खून से भगवान का शरीर झरने वाले पहाड़ सरीखा मालम होता था। (४) यह उपसर्ग शान्त ही नहीं हुआ था कि प्रचण्ड मुखवाली (घृतेलिका) दीमक कर भगवान के शरीर से चिपट गयीं और उनको काटने लगी । उनको देखने से ऐसा लगता था मानो भगवान के रोंगटे खड़े हो गये हों। (५) उसके बाद उस देव ने विच्छुओं को उत्पन्न किया, जो ' अपने तीखे देशों से भगवान के शरीर को उसने लगे। . (६) फिर उसने न्यौले उत्पन्न किये, जो भयंकर शब्द करते हुए भगवान की ओर दौड़े और उनके शरीर के मांस-खण्ड को छिन्नभिन्न करने लगे। (७) उसके पश्चात् उसने भीमकाय सर्प उत्पन्न किये । वे भगवान को काटने लगे। पर जब उनका सारा विष निकल गया तो ढीले होकर गिर पड़े। , । (८) फिर चूहे उत्पन्न किये । जो भगवान के शरीर को काटते और उस पर पेशाब करके भगवान के शरीर में अधिक जलन उत्पन्न करते।। . . . . .. ९.) उसने लम्बी सूंड वाला हाथी उत्पन्न किया जो भगवान को उछाल कर अपने नुकीले दातों पर झेल लेता था और उन्हें नीचे
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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