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________________ २२४ आगम के अनमोल रत्न (१५) उसके बाद उसने बवन्डर चलाया जिसमें भगवान चक्र की तरह घूमने लगे लेकिन फिर भी वे ध्यान से च्युत नहीं हुए। (१८) थककर उसने भगवान पर कालचक्र चलाया जिससे भंगवान घुटने तक जमीन में फंस गये लेकिन इतने पर भी भगवान का ध्यान भंग नहीं हुआ.। । इन प्रतिकूल उपसर्गों से भगवान को विचलित करने में अपने को असमर्थ पाकर उनने अनुकूल उपसर्गों द्वारा भगवान का ध्यान भंग करने का प्रयास किया ।, ' (१९) एक विमान में बैठकर भगवान के पास आया और बोला-'कहिये आपको स्वर्ग चाहिये या अपवर्ग ?" लेकिन भगवान महावीर फिर भी अडिग रहे । (२०) अन्त में उसने अन्तिम उपाय के रूप में एक अप्सरा को लाकर भगवान के सन्मुख खडी कर दिया । लेकिन उसके हावभाव भी भगवान को विचलित नहीं कर सके । जब रात्रि पूरी हुई और प्रातःकाल हुआ तब भगवान ने अपना ध्यान पूरा करके बालुका ग्राम की ओर विहार कर दिया । पोलासचैत्य से चलकर भगवान ने मालुका सुभोग, सुच्छेत्ता, मलय और हत्थीसीस आदि स्थानों में भ्रमण किया और उन सभी ग्रामों में संगम तरह तरह के उपसर्ग करता रहा । भगवान को उसने छह महीने तक अनेक कष्ट दिये। अन्त में हारकर वह भगवान की प्रशंसा करता हुआ स्वस्थान चला गया.। , व्रजगांव, श्रावस्ती, कोशांबी, , वाराणसी, राजगृह और मिथिला आदि नगरों में घूमते हुए भगवान वैशाली पधारे और वहीं ग्यारवाँ उचातुर्मास पूरा किया । यहाँ भूतानन्द नागकुमारेन्द्र ने आकर , प्रभु को बन्दना की !! , , . . . !
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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